भूर्ण हत्या
भूर्ण हत्या
जीने का अहसास है बाकी
मेरी कोई कोई साँस है बाकी
सपने भी ना बुन पायी मैं,
खुशबू भी ना चुन पायी मैं।
नींद में सोई अलसाई सी
भोर भी ना देख पाई मैं।।
था खंजर उसने चला दिया
चिर निद्रा में मुझे सुला दिया
ओ माँ तूने यह क्या किया
क्यों मुझे तूने भुला दिया।।
क्या मैं इतनी अनचाही थी
जो मौत ये तूने चाही थी
सब तो तेरे अपने थे
बस मैं ही एक पराई थी।।
जब कोई ना होगा साथ तेरे
तुझे याद तो मेरी आयेगी
भूलें चाहे हर कोई
पर तू मुझे भुला ना पायेगी।।
