दांव पर रिश्तें
दांव पर रिश्तें
बेटी थी तो मां बाप के बातों को
सर आंखों पर रखा था
कभी उनकी जिम्मेदारियों को
सर पर उठा कर रखा था
कभी गैर के रिश्तों में भी
समर्पण करना सीखा
कभी किसी की खुशी के लिए
सब कुछ अर्पण करना सीखा
कभी खुशियों को पाने के लिए
खुशियों को दांव पर लगाया है
कभी किस्तों में जोड़ जोड़ कर
कुछ रिश्तों को खास बनाया है
इतना सब करने के बाद भी
सब कुछ व्यर्थ हो जाता है
कितना भी अपनापन दिखा लो
हर कोई पराया हो जाता है
बहुत कुछ खोया है सिर्फ
कुछ चीजों को पाने के लिए
रिश्ते ही दांव पर लगाएं हैं
कुछ रिश्तों को बनाने के लिए