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ashok kumar bhatnagar

Tragedy Inspirational

4  

ashok kumar bhatnagar

Tragedy Inspirational

मेरे शब्द

मेरे शब्द

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(1) जहर का जायका


 जहर का जायका उनसे मत पूछो,

उम्र जिनकी सांपों के साथ गुजरी है।

हर डस में छिपा है एक नया जख्म,

हर दर्द में एक कहानी अधूरी है।

वो जहर से नहीं डरते,

जीवन की कड़वाहट से लड़ते हैं।

हर सांस में घुटन सी बसी है,

मगर होंठों पे अब भी मुस्कान बची है।

किस्मत ने छीन ली राहत की नींद,

रातों में जागने की उन्हें आदत सी पड़ी है।

इस जहरीली दुनिया के साथ चलते-चलते,

जिंदगी अब जैसे एक चुनौती भरी है।

तो जहर का जायका उनसे मत पूछो,

उम्र जिनकी सांपों के साथ गुजरी है।


(2) मैं कौन हूँ?

भटकते रहते हैं, संघर्षों की गलियों में,

खोजते हैं अपना मकसद, हर इशारे में।

भीड़ में खोया हुआ, धुंधली राहों में,

खुद को खोजता हूँ, खुद से राह चलते हुए।

सोचता हूँ, क्या हैं हम, कहाँ से आए हैं,

जवाबों की तलाश में, आँधियों में खोजते हैं।

अकेलेपन के साथ, जीने का सफर तय करते हैं,

प्रश्नों के साथ, जीने की यात्रा को चुनते हैं।

भव्य यात्रा में, जीवन की धूमिल धारा में,

खोजते हैं खुद को, खुद की धुंधली गलियों में।

भीड़ और शोर में, भटकते हैं राहों पर,

खुद को एकांत में, आत्मा की उड़ान में।

मैं कौन हूँ, क्यों हूँ, यह जिज्ञासा हर किसी की,

खोजते हैं जवाब, समय के साथ चलते हुए।

जीवन का मकसद, यह अज्ञात सफर है,

प्रश्नों के साथ, सत्य की खोज में।

भव्य शोर में, विचारों की धुंधली धारा में,

खोजता हूँ खुद को, भाग्य की भीड़ में।

मैं कौन हूँ, क्यों हूँ, यह जिज्ञासा अटल,

खोजता हूँ उत्तर, जीवन के अज्ञात सफर में।

एकांत की ओर, आत्मा का सफर निकालता,

प्रश्नों के साथ, चलता हूँ सत्य की खोज में।

दुनिया का मेला है, और भीड़ चारों ओर है,

फिर भी, अकेलेपन में खुद को पाता हूँ।

भीड़ में खोया, शोर में छुपा,

खुद को ढूंढ़ता, अपनी कविता के रंग में।

मैं कौन हूँ, क्यों हूँ, यह तो सवाल है,

इन प्रश्नों के साथ, जीवन की धारा में।

जीवन का मकसद, यह रहस्य है,

प्रश्नों के उत्तर, सफर की गाथा है।

एकांत से घिरा, फिर भी आत्मा का सफर हूँ,

जीने की कला, खुद को पहचानने का अद्भुत सार हूँ।

चारों तरफ भीड़ है, शोर है, दुनिया का मेला है,

फिर भी मैं अकेला हूँ, खुद को एकांत से घिरा पाता हूँ।

मैं कौन हूँ, क्यों हूँ, किसलिए आया हूँ,

इन्हीं प्रश्नों से खुद को घिरा पाता हूँ।

स्वार्थ की धुंधली धारा में बहता हूँ,

सत्य की खोज में, अपनी राह ढूंढता हूँ।

जीवन का मकसद, रहस्यमय यह खेल है,

उत्तर की तलाश में, स्वयं को परखता हूँ।

एकांत से घिरा, फिर भी साथी हूँ सबका,

खुद को पहचानने का, यह अद्भुत सफर।


(3 )खामोशी का संवाद

दिन भर की भागदौड़ में, शोर से भरी दुनिया में,

सुकून का एक ही उपाय है, बस खामोशी में।

शब्दों से परे, मौन भी बोलता है,

रूह की गहराई में कुछ खोलता है।

ना शोर, ना गूँज, ना कोई पुकार,

खामोशी में बसता है अनोखा संसार।

जहाँ साँसें धीमे-धीमे कहानियाँ कहती हैं,

और धड़कनों की लय में कविताएँ बहती हैं।

जब शब्द खो जाते हैं, अर्थ खो जाते हैं,

तब खामोशी की भाषा दिल को छू जाती है।

खामोशी में है सुकून, खामोशी में प्यार,

खामोशी में छुपे हैं जीवन के राज़ अपार।

तो चलो, कुछ पल को इस दुनिया से दूर जाएँ,

खुद से बातें करें, खामोशी में खो जाएँ।


(4)खुद से मुलाक़ात

दुनिया की भागदौड़ में,

चलते रहे वो निरंतर,

मैं ठहर गया एक पल को,

खुद से मिलने को अटल।

हर मंज़िल को पार किया,

नई ऊंचाइयों को छू लिया,

पर खुद को पहचाना नहीं,

बस सपनों में ही जिया।

ख्वाहिशों का बोझ था भारी,

उम्मीदों ने की सवारी,

मैंने बोझ को हल्का किया,

खुद से मिल मुस्कुराया ज़रा।

हर जीत में सुकून नहीं,

ये अनुभव से मैंने जाना,

खुद को चुन, खुद को समझ,

यही असली ख़जाना।


(5)खुद से प्यार

थक गया हूँ हर दर्द छुपाने से,

हर आँसू को पी जाने से।

हर मुस्कान के पीछे तूफ़ान दबाने से,

अब खुद को गले लगाना चाहता हूँ।

अनकहे सवाल जो दबे थे मन में,

जिनका उत्तर खोजता रहा ज़माने में।

अब अपनी रूह से पूछना चाहता हूँ,

अपने दिल की गहराइयों में उतरना चाहता हूँ।

हर टूटन को जोड़कर,

हर हार से सीख लेकर।

अपने वजूद को अपनाकर,

सुकून भरी राह बनाना चाहता हूँ।

झूठे बंधन और मुखौटे उतारकर,

अब सच्चाई को जीना चाहता हूँ।

अपने आँसुओं को पोंछ सकूँ,

बस खुद से प्यार करना चाहता हूँ।


  (6)  फैसले और फासले

फैसले और फासले संग चलते,

दिल हसरतों में हर पल ढलते।

दूरियां सिर्फ जिस्म की नहीं,

यादें

रह जातीं मन में कहीं।

ख्वाबों में हर रोज़ बुलाया,

पर नसीब ने रुख बदलाया।

उम्मीद की लौ फिर भी जलती,

हर आहट पर नजरें मचलती।

वक्त ने रंग कई दिखाए,

ख़ामोशियों ने सच समझाए।

लौटेगा, यह तेरा यकीन था,

न आना उसका नसीब था।

पीड़ा संग जीवन बढ़ता रहा,

हर मोड़ पर कुछ सिखता रहा।

करुणा और क्रूरता का मेल,

प्रेम और विरह का छूटा खेल।

संघर्षों में मंज़िल मिलती,

हर पीड़ा नई राहें सिलती।

उम्मीदें हर आंसू में छुपीं,

नई सुबहें राहों में रुकीं।

हर सांस में अनगिनत बातें,

जीवन की धड़कन में सौ सौ गाथें।

सृष्टि का यह गूढ़ रहस्य,

अंत संग हर नई शुरूआत स्पष्ट।

लगाव और पीड़ा का संग,

जीवन की राहों में अटूट रंग।

आओ, संग चलें इस राह,

खोजें नई मंज़िल की चाह।

प्रेम की गाथा, सपनों का साथ,

जीवन का यह अटूट विश्वास।

हर अंत में नई शुरुआत,

यही जीवन की सच्ची बात।


(7)सत्य की खोज: अपराध या अधिकार?

क्या सत्य की खोज अपराध है?

या यह जीवन का एक स्वाभाविक संघर्ष?

हर प्रश्न, हर विचार,

उत्तर की अनवरत तलाश में भटकता है।

एक मंच, जहाँ सत्य की खोज,

हर क्षण नया रूप लेती है।

अन्याय के विरुद्ध उठती आवाज़ें,

संघर्ष का संकल्प बन जाती हैं।

क्या यह भी एक अपराध है?

जब हम न्याय की मांग करें,

जब हम अपने हक के लिए खड़े हों,

तो यह विद्रोह कहलाता है?

हर कदम, हर मोड़ पर

नए अनुभव, नई सीख—

सत्य की राह पर चलने वालों के लिए

यह नियति ही बन जाती है।

सत्य का आलोक जुर्म नहीं,

बल्कि विचारों की स्वतंत्रता है।

यह संघर्ष की लौ है,

जो अंधकार को चीरकर नए सवेरे की राह दिखाती है।


(8)अडिग शिखर

जब तुम दुर्गम राहों को पार कर लोगे,

जब नुकीले पत्थरों पर नंगे पाँव चलते हुए

तुम्हारे पैरों में पड़े छाले भी तुम्हें रोक न पाएँगे,

जब हर बाधा को अपनी इच्छाशक्ति से

तुमने धूल चटा दी होगी,

तब तुम समझोगे—

संघर्ष केवल बाधा नहीं, एक साधना है,

जो तुम्हें पहले से अधिक मजबूत बनाती है।

जब तुम ऊँचे पर्वतों का सीना चीर दोगे,

जब तुम्हारी साँसें थककर भी

हौसले का गीत गाने लगेंगी,

जब तुम्हारी आँखें मंज़िल से मिलने की

आतुरता में और अधिक चमकने लगेंगी,

तब तुम जानोगे—

कोई अंतर नहीं तुममें और उन चट्टानों में,

जिन्हें तुमने शिखरों को भेद कर जीता है।

जब तूफान भी तुम्हें हिला न सकेगा,

जब ठंडी हवाएँ तुम्हारा साहस न तोड़ सकेंगी,

जब विपरीत परिस्थितियाँ भी तुम्हारे संकल्प को

ज़रा भी डिगा न पाएँगी,

तब तुम समझोगे—

सच्ची विजय वही होती है,

जो मन के भीतर अर्जित होती है।

जब दुनिया सफलता और असफलता के तराजू में

तुम्हें तौलने लगेगी,

जब कुछ लोग तुम्हारी जयकार करेंगे,

और कुछ लोग तुम्हारी आलोचना,

तब तुम जानोगे—

कोई वास्तविक अंतर नहीं जीतने और हारने में,

कोई वास्तविक अंतर नहीं खोने और पाने में।

क्योंकि सच्ची विजय वही है,

जो तुम्हें अडिग बना दे,

जो तुम्हें अपने सत्य और संकल्प से जोड़ दे।

जब तुम शिखर पर खड़े होकर

अपने भीतर की शांति को महसूस करोगे,

तब तुम्हें ज्ञात होगा—

सबसे ऊँचा शिखर तुम्हारे भीतर ही था,

जिसे तुमने अपनी आत्मशक्ति से जीत लिया।


(9)उसकी आँखों का जादू

सुना है उसकी आँखें करिश्माई हैं,

लोग उसे आँखें भर-भर कर देखते हैं।

चलो, हम भी एक बार उसकी आँखों में झाँकते हैं,

और खुद को खुशनसीब बनाते हैं।

सुना है कि उसकी त्वचा बहुत मुलायम है,

चाँदनी रात में उसकी आभा झिलमिलाती है।

अगर ऐसा है, तो उसके पास चलते हैं,

स्नेह से उसके गालों पर चाँदनी का मरहम लगाते हैं।

सुना है दिन में उसे तितलियाँ घेर लेती हैं,

और रात में जुगनू उसकी महफिल सजाते हैं।

अगर ऐसा है, तो चलो, उसके पास चलते हैं,

कुछ तितलियाँ उसकी हँसी में कैद कर लाते हैं।

चलो, एक रात उसके साथ बिताते हैं,

और जुगनू की रोशनी में उसकी दुनिया निहारते हैं।

उसके गुलाबी होंठों की मुस्कान,

उसकी झिलमिलाती आँखों की पहचान।

सुना है उसकी बातों से फूल झड़ते हैं,

अगर ऐसा है, तो चलो, उससे बातें करते हैं।

उसकी मीठी वाणी से झड़े कुछ फूल,

संभाल कर अपनी यादों में संजोते हैं।

उसकी आँखों की चमक हमें,

खुशियों का सच्चा संदेश देती है।

हर नज़र में बसी उसकी मोहक छवि,

मन को प्रेम के रंग में रंग देती है।

उसकी वाणी की मिठास में,

छिपा है प्रेम का अनोखा अहसास।

उसकी आँखों में चमकते सितारे,

हमें खींच ले जाते हैं उसकी ओर।

खो जाते हैं उसकी खोज में,

उसकी मीठी आवाज़ में छुपे हर राज़ में।

उसकी दुनिया की हर बात,

हमारे दिल में नई उमंग जगाती है।







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