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Uma Shankar Shukla

Tragedy

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Uma Shankar Shukla

Tragedy

सन्नाटों की शाम

सन्नाटों की शाम

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सन्नाटों की शाम हमारी बस्ती में ।

लोकतंत्र बदनाम हमारी बस्ती में ।।


लिए हाथ में आग हवाऐं डोल रहीं,

मचा हुआ कोहराम हमारी बस्ती में ।


जली-जली झोपड़ियों के चेहरे बोले, 

वहशी हुआ निजाम हमारी बस्ती में ।


भूँख प्यास की तपन लिए फुटपाथों पर,

 सोया हुआ अवाम हमारी बस्ती में ।


जबसे उगे मरुस्थल मन की आँखों में ,

दंगे कत्ल-ए-आम हमारी बस्ती में ।


सत्ताधारी भाग्य विधाता बँगलों में,

टकराते हैं जाम हमारी बस्ती में ।


गिद्धों के प्रतिविम्ब देखकर सूख गए,

बरगद पीपल आम हमारी बस्ती में ।


सुन्न सिराओं में नफरत के विष फैले, 

प्यार हुआ नीलाम हमारी बस्ती में । 

      


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