सन्नाटों की शाम
सन्नाटों की शाम
सन्नाटों की शाम हमारी बस्ती में ।
लोकतंत्र बदनाम हमारी बस्ती में ।।
लिए हाथ में आग हवाऐं डोल रहीं,
मचा हुआ कोहराम हमारी बस्ती में ।
जली-जली झोपड़ियों के चेहरे बोले,
वहशी हुआ निजाम हमारी बस्ती में ।
भूँख प्यास की तपन लिए फुटपाथों पर,
सोया हुआ अवाम हमारी बस्ती में ।
जबसे उगे मरुस्थल मन की आँखों में ,
दंगे कत्ल-ए-आम हमारी बस्ती में ।
सत्ताधारी भाग्य विधाता बँगलों में,
टकराते हैं जाम , हमारी बस्ती में ।
गिद्धों के प्रतिविम्ब देखकर सूख गए,
बरगद पीपल आम, हमारी बस्ती में ।
सुन्न सिराओं में नफरत के विष फैले,
प्यार हुआ नीलाम , हमारी बस्ती में ।