गज़ल
गज़ल
चाल किसने कुटिल चली अपनी।
अम्न की बस्तियाँ लुटी अपनी।।
हर तरफ मौत का है सन्नाटा,
खु़द में है गुम, बेखु़दी अपनी।
साथुता तो महज़ दिखावा है,
छोड़ सकते नहीं ठगी अपनी।
खुदकुशी के लिए हैं बेबस वो,
देखकर झोपड़ी जली अपनी।
ऐब गै़रों में ढूढ़ते फिरते,
देखते हैं नहीं कमी अपनी।
राहज़न आ गए जो राहों मे,
मंजिलें दूर हो गईं अपनी।
वेग लहरों का किस तरह रोके,
साहिलों के बिना नदी अपनी।
हौसले गर बुलन्द हो जाऐं,
आसमाँ और है ज़मीं अपनी।
एक ठोकर लगी क्या पाँवों में,
जिन्दगी तो सुधर गई अपनी।
