अम्न के दीप
अम्न के दीप
ख्वाबआँखों में उजालों के सजाकर जाते।
ये अँधेरा हर एक दिल का मिटाकर जाते।।
दूर मंज़िल है बहुत राह है काँटों से भरा ,
हौसला मुश्किलों में उनके बढ़ाकर जाते।
लोग वर्षों से हैं बेकल सियासी साजिश में,
दिए हैं जख्म तो मरहम भी लगाकर जाते।
रोज हैवानियत के खेल बस्तियों में रचे ,
कभी इन्सान को इन्सान बनाकर जाते।
लूट दंगे तो कभी दौर दिखे दहशत के,
अम्न के दीप भी बस्ती में जलाकर जाते।
दिलों के दरमियाँ अमनपरस्त बस्ती में,
उठी दीवार नफरतों के गिराकर जाते ।
थामकर झूठ का दामन जो रहनुमाई की,
कभी वादे भी हकीकत में निभाकरजाते।
जंग तो आज भी जारी है रोटियों के लिए,
फैसला मुफ़लिसों के हक में सुनाकर जाते।