तस्वीर नकली चेहरों की
तस्वीर नकली चेहरों की
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जोश में होश गँवाने से भला क्या हासिल ।
रोब मुर्दों पे जमाने से भला क्या हासिल।
भूख की आग में जो जलके खाकसार हुए,
झोपड़ी उनकी जलाने से भला क्या हासिल।
साजिश-ए-कत्ल की करता है बयाँ सन्नाटा,
दाग दामन के छुपाने से भला क्या हासिल।
कैद आँखों में है तस्वीर नकली चेहरों की,
आईना तोड़ के जाने से भला क्या हासिल।
सामने असलियत के पोल खुले दिखते हैं,
झूँठ पे पर्दा गिराने से भला क्या हासिल ।
रोशनी मिल न सकी आज तक गरीबों को,
दीप मरघट पे जलाने से भला क्या हासिल।