अहंकार के शूल
अहंकार के शूल
जीवन में चुभते सदा, अहंकार के शूल।
फिर भी मानव कर रहा, रोज भूल पर भूल।
रोज भूल पर भूल, दम्भ को पाले मन में,
रहते हैं संत्रस्त, दुखों से नित जीवन में। (1)
नाटक है यह जिन्दगी, रंगमंच संसार।
अभिनय करते रोज हैं, नये - नये किरदार।
नये-नये किरदार, बन्द कर मन के फाटक,
करते हैं संघर्ष, नियति के हाथों नाटक। (2)
पहले करते कामना, और बाद में कर्म।
आम आदमी आज का, यही निभाता धर्म।
यही निभाता धर्म, भले दारुण दुख सह ले,
नहीं कर्म निष्काम, मिले फल कैसे पहले। (3)
कथनी - करनी में सदा, जो रखते हैं फर्क।
खो देते विश्वास वो, कुछ भी कर लें तर्क।
कुछ भी कर लें तर्क, कुटिल चालों से अपनी,
निश्चित जाती हार, एक दिन झूठी कथनी। (4)
जैसे नदियाँ आम जन, का करतीं उपकार।
बदले में चाहा मगर, कभी न प्रत्युपकार।
कभी न प्रत्युपकार, आचरण अपने ऐसे,
अपनाओ दिन - रैन, सदा निर्मल जल जैसे। (5)