दीप घर-घर में जलाए साल ये
दीप घर-घर में जलाए साल ये
दीप घर - घर में जलाए साल ये।
फूल मरुथल में खिलाए साल ये।।
भूँख- महँगाई -गरीबी का शज़र,
काटकर जड़ से मिटाए साल ये।
थक गए हैं राह में जिनके कदम,
हौसला उनका बढ़ाए साल ये।
लोभ-लिप्सा-झूँठ के बाजार को,
सत्य का दर्पण दिखाए साल ये।
द्वेष-नफरत की सुलगती आग को,
नेह सरिता से बुझाए साल ये।
मुफलिसों का दर्द बहरे कान को,
तानकर सीना सुनाए साल ये।
वेदना की रात ढोती बस्तियाँ,
भोर का सूरज उगाए साल ये।
राह रोके जो खड़े हैं राहजन,
रहबरी उनको सिखाए साल ये।
मुल्क का हर नागरिक इन्सान है,
भेद यह सबको बताए साल ये।
शाश्वत कायम रहे इन्सानियत,
प्यार का मजहब चलाए साल ये।