STORYMIRROR

Kavita Sharrma

Abstract

3  

Kavita Sharrma

Abstract

आदमी

आदमी

1 min
211

सांझ अकेली है कोई साथ ही नहीं

काम में मशगूल हैं इतने सुकून के पल जरूरी नहीं

ढलता हुआ सूरज आसमां में फैली लालिमा

लहरों की तरंगों का साथ गुनगुनाना अब सीखा नहीं

यूं अकेले अकेले न रहो सबके संग मिला करो

आदमी हो तुम तो बनो मशीन नहीं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract