आंखें
आंखें
करती है सब कुछ मुआयना
यह आंखें हैं मन का आईना
चुपचाप भाप लेती है सब कुछ
जान कर भी सब रहती है चुप
शब्द नहीं आते हैं इनको
पर कह देती है सारी मन की बातें
समंदर जैसी गहराइयों में उतर कर
काश हम तैर के आ जाते
कभी इनमें प्रेम ,कभी गुस्सा
कभी हास्य है झलकता
कभी इनमें गहराई, कभी शरारत
कभी दिखती है निर्मल ममता
तेरी आंखे है दर्पण
इनमें दिखता है मेरा चेहरा
दिखती है तेरी सच्चाई इनमें
प्यार का नाता गहरा
कभी ना आने दूंगा आंसू
इन प्यारी सी आंखों में
करता हूं तुमसे मैं वादा
रखूगा मैं तुमको पलकों पे।
