जल गई
जल गई
जल गयी जल गई,
गरम चाय को देखकर फिसल गई।
न जाने अक्सर फिसल जाती है,
मेरी जीभ हर बार बवाल मचाती है।
टेढ़ी बात इसे समझ में नहीं आती,
हर बार ये सच बोल जाती है।
एक बार जा रही थी मैं बस से कहीं,
चुप्पी नहीं जा रही थी मुझसे सही।
इतने में आगे कुछ हुआ,
मेरे कानों से निकल गया धुआँ।
भीड़ को खिसकाते हुए मैं पहुँची आगे,
जैसे नींद से हो अभी अभी जागे।
देखा एक अफ्रीकन बाजूवाली औरत को कुछ हिन्दी कुछ अंग्रेज़ी में बुरा-भरा सुना रही थी,
उसकी तरफ देखकर जोर-जोर से हाथ हिला रही थी।
मैंने सोचा मैं आगे जाती हूँ,
बिगड़ा हुआ मामला सुलझाती हूँ।
मेरे पूछने पर उसने बताया,
इसने मेरे बच्चे को बोला काला,
थोड़ी देर मैंने उसके मुँह पे लगाया ताला।
मैंने उसकी ओर देखा कुछ सोचा और बोला,
पहले इस चिम्पांजी के बच्चे को दूर हटाइए,
और मुझे मामला सही सही समझाइए।
यह सुनते ही वो मुझ पर बिगड़ गई
और दूसरी औरत को छोड़ कर मुझसे लड़ गई।
बड़ा मुश्किल पड़ा पीछा छुड़ाना,
यह था मेरी जीभ का फँसाना
यह था मेरी जीभ का फॅसाना।
