मैं यक़ीन कैसे कर लूँ, उन फरेबी नजरों पर, आँखें तो धोखा नहीं दे सकती मैं यक़ीन कैसे कर लूँ, उन फरेबी नजरों पर, आँखें तो धोखा नहीं दे सकती
विधा-गज़ल काफ़िया-रा रदीफ़-चाँद सा विधा-गज़ल काफ़िया-रा रदीफ़-चाँद सा
एक खूबसूरत लम्हा बनाना चाहिए था। एक खूबसूरत लम्हा बनाना चाहिए था।
कुछ अपनी सुना ये मन मेरा मायल हुआ तूने निभायी वफ़ा यूँ ही तेरा का़यल हुआ। कुछ अपनी सुना ये मन मेरा मायल हुआ तूने निभायी वफ़ा यूँ ही तेरा का़यल हुआ।
अपने अहंकार को बढ़ाकर भस्म कर दे पल में सब रिश्ते अपने अहंकार को बढ़ाकर भस्म कर दे पल में सब रिश्ते
नाराज़ होती हूँ, रूठ जाती हूँ कोई नहीं मनाता, टूट जाती हूँ। नाराज़ होती हूँ, रूठ जाती हूँ कोई नहीं मनाता, टूट जाती हूँ।