मेरा हाथ थाम लो
मेरा हाथ थाम लो
तू साथ होता है पर तेरी कमी सी है
यूँ इन आँखों में अक्सर नमी सी है
ना जाने कहाँ गुम है संग होकर तू
सच्ची चाहतों से हुआ तू बेज़ार क्यूँ
सोया है चाँद नींद नहीं आई मुझको
आँखों ने कैसी रात दिखाई मुझको
मेरा हाथ थाम लो कुछ बात बने
हो ख़ुश हम तुम कभी साथ चलें
थी कभी तुझे इस दिल की बड़ी फ़िक्र
बता क्यूँ नहीं है अब इसका कोई ज़िक्र
सोचते रहे मुसलसल रातभर तुझको
पता हो जाये काश ये बेख़बर तुझको
बेरुखी बढ़ रही है दरमियाँ धीरे-धीरे
वफायें भी हुई है ख़ामोश हौले हौले
इल्तेजा है मुझपे अब रायगाँ कोई न हो
फिक्रमंद कोई न हो मेहरबाँ कोई ना हो
नहीं इंतज़ार किसी भी मुलाकात का
राब्ता रहा बस मुख़्तसर सी बात का
मेरी बेक़रारी ने राज़ छुपाने ना दिया
वक़्त ने हाल ए दिल सुनाने ना दिया
महफूज़ है तू जैसे तस्वीर जड़ी होती है
देखते हैं जिधर तेरी याद खड़ी होती है
बीते हैं कैसे तेरे ये माह ओ साल बता
है ख़फ़ा क्यूँ आया शीशे में बाल बता
दिखाके रास्ता समुंदर भी अब पछताता है
ताकता रहा मुसाफ़िर कब लौटके आता है
आ दिल के बुझे चराग़ जला दे ए ज़िंदगी
सदा फिर से तू अपनी सुना दे ए ज़िंदगी
मिल ही गया आख़िर ख़्वाब नींद खोने से
राह में मंज़िल की नूर हाइल है मेरे होने से
कुछ अपनी सुना ये मन मेरा मायल हुआ
तूने निभायी वफ़ा यूँ ही तेरा का़यल हुआ।