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NOOR EY ISHAL

Romance Classics

4  

NOOR EY ISHAL

Romance Classics

मेरा हाथ थाम लो

मेरा हाथ थाम लो

2 mins
361


तू साथ होता है पर तेरी कमी सी है

यूँ इन आँखों में अक्सर नमी सी है

ना जाने कहाँ गुम है संग होकर तू

सच्ची चाहतों से हुआ तू बेज़ार क्यूँ


सोया है चाँद नींद नहीं आई मुझको

आँखों ने कैसी रात दिखाई मुझको

 मेरा हाथ थाम लो कुछ बात बने

 हो ख़ुश हम तुम कभी साथ चलें


थी कभी तुझे इस दिल की बड़ी फ़िक्र

बता क्यूँ नहीं है अब इसका कोई ज़िक्र

सोचते रहे मुसलसल रातभर तुझको

पता हो जाये काश ये बेख़बर तुझको


बेरुखी बढ़ रही है दरमियाँ धीरे-धीरे

वफायें भी हुई है ख़ामोश हौले हौले

इल्तेजा है मुझपे अब रायगाँ कोई न हो

फिक्रमंद कोई न हो मेहरबाँ कोई ना हो


नहीं इंतज़ार किसी भी मुलाकात का

राब्ता रहा बस मुख़्तसर सी बात का

मेरी बेक़रारी ने राज़ छुपाने ना दिया

वक़्त ने हाल ए दिल सुनाने ना दिया


महफूज़ है तू जैसे तस्वीर जड़ी होती है

देखते हैं जिधर तेरी याद खड़ी होती है

बीते हैं कैसे तेरे ये माह ओ साल बता

है ख़फ़ा क्यूँ आया शीशे में बाल बता


दिखाके रास्ता समुंदर भी अब पछताता है

ताकता रहा मुसाफ़िर कब लौटके आता है

आ दिल के बुझे चराग़ जला दे ए ज़िंदगी

सदा फिर से तू अपनी सुना दे ए ज़िंदगी


मिल ही गया आख़िर ख़्वाब नींद खोने से

राह में मंज़िल की नूर हाइल है मेरे होने से

कुछ अपनी सुना ये मन मेरा मायल हुआ

तूने निभायी वफ़ा यूँ ही तेरा का़यल हुआ।


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