चाँद की प्रेरणा
चाँद की प्रेरणा
तारों की रोशनी से सजी रात, शाँत और गूढ़ थी. वर्षों से वे आसमान को चमकाते आए थे, राह दिखाते, खोए हुए सपनों को सँवारते. लेकिन आज कुछ तारे थक गए थे, उनकी चमक हल्की पड़ रही थी. अँधेरे से जूझते हुए, वे खुद को छोटा महसूस कर रहे थे. चाँद ने उनकी पीड़ा देखी, और धीमे स्वर में कहा— "ओ मेरे प्रिय तारों, अँधेरे से मत डरो.मैं हर रात इससे लड़ता हूँ, अकेले इसके आगोश में खड़ा रहता हूँ. यह मुझे निगलने की कोशिश करता है, मेरी रोशनी छीन लेना चाहता है—लेकिन मैं फिर भी चमकता हूँ." तारों ने ध्यान दिया, उनकी रोशनी काँपी, पर बुझी नहीं. "तुम आकाश के उजाले हो," चाँद ने आगे कहा, "तुम्हारा हर एक प्रकाश मायने रखता है.कोई भी चमक व्यर्थ नहीं जाती, कोई भी रोशनी छोटी नहीं होती.बस चमकते रहो, चाहे रात कितनी भी लंबी क्यों न लगे." तभी, पूर्व दिशा से सूरज अपनी तेजस्वी आभा के साथ उभरा,उसकी किरणें फैलते ही अंँधकार भागने लगा. थके हुए तारे हल्के-से मुस्काए, उनकी रोशनी सुबह की सुनहरी किरणों में विलीन हो गई. "देखा?" चाँद ने मुस्कुराकर कहा, "रात हमें परखती है,लेकिन सूरज हमेशा आता है. लड़ते रहो, चमकते रहो—दुनिया को तुम्हारी रोशनी की ज़रूरत है. " और फिर, तारे अगले अंँधेरी रात को रोशन करने के लिए तैयार हो गए—फिर से पूरे आत्मविश्वास के साथ चमकने के लिए. NOOR EY ISHAL
