संगत
संगत
एक कुंदन भी कभी लोहा हो जाता है
संगत से तो हंस भी कौआ हो जाता है
रंग न सही गुण तो आ ही जाते है,साखी
संगत से तो रोशनी में भी अंधेरा हो जाता है
वो पत्थर भी कभी पिघल जाया करते है,
संगत से तो वो ज्वालामुखी बन फट जाता है
संगत से तो फ़ौलाद भी मोम हो जाता है
इसलिये बुजुर्गों ने सही कहा है,साखी,
अच्छी संगत से आदमी हंस हो जाता है
बुरी संगत से आदमी कौआ हो जाता है
जिसके पास होता अच्छे दोस्तों का सोना,
वो गम-दरिया में भी सीप मोती हो जाता है
इसलिये सदा अच्छी संगत में रहिये,जनाब
अच्छी संगत से तो शूल भी फूल हो जाता है!
