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Sangam Choudhury

Abstract

4.0  

Sangam Choudhury

Abstract

ठहर जाओ

ठहर जाओ

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280


वक्त ठहर जाओ,

जिंदगी अभी दूर है,

कुछ तो तमन्ना हैं इसका,

ख़्वाब देखने को ये मजबूर है..


वक्त ठहर जाओ,

ये पल अनोखा है,

आंख भरके देखने दो,

बस एक ही तो मौका है..


वक्त ठहर जाओ,

कौन जाने आगे क्या हो जाए,

जिंदगी के रेत से भरी ये मुट्ठी,

जंजीरे बनके हाथों में चुभ न जाए..


वक्त ठहर जाओ,

सफर को अपनाना अभी बाकी है,

बस राहों में मिल जाने दो हमसफर से,

बस उनका इंतज़ार ही काफी है...



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