'' कृषक के स्वप्न "
'' कृषक के स्वप्न "
हर्षित कृषक मन, छाया है सघन घन,
बूँद-बूँद टिप-टिप, पड़ी ऐसी बुँदिया।
बादल पाहुन आये, पावस सन्देशा लाये,
कर में लिए है जैसे, मनोहारी पतिया ।
कजरारे मेघा छाए, वसुधा को हर्षाए,
कृषक नयन पाए, सुखकारी निंदिया ।
बेटी की विदाई होगी, गूँजी शहनाई होगी,
परदेशी होगी मेरी, आँगन की चिड़िया ।
