STORYMIRROR

Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy Inspirational

4  

Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy Inspirational

भारत दुर्दशा

भारत दुर्दशा

6 mins
385

देश उन्नति के चरणों को छूने लगा। 

देखते-देखते उन्नति के नाम पर क्या-क्या होने लगा ।

एक तरफ अमीरी बढ़ी तरफ एक गरीबी बढ़ने लगी ।

कोई हंसता रहा ...कोई रोने लगा ।


देश उन्नति के चरणों को छूने लगा।

 उठ गया देश से क्या दया ...क्या धर्म ....????

पाप फैला भ्रष्टाचार कदम दर-कदम बढ़ाने लगा।


 सत्य का गला घोट झूठ आगे आने लगा।

 धर्म- जाति के भेद समाज बढ़ाने लगा।

 लोग इनके नाम पर जलने कटने मरने लगे ।


 सदाचार न जाने कहां खो गया।

 बेईमानी का एक नया दौर आ गया ।

कोई कीमत नहीं इंसान की ,

पैसे से इंसान भी बिकने लगा ।


देश उन्नति के चरणों को छूने लगा।

 देखते- देखते क्या- क्या होने लगा ।

रिश्ते बिखरने लगे ।

अपने-अपनों को ही भूलने लगे ।

सिर्फ पैसा- पैसा और कुछ नहीं ।

पैसों से रिश्ते -नाते तुलने लगे ।


देश उन्नति के चरणों को छूने लगा।

 जनसंख्या, बेकारी बढ़ती रही।

खाई अमीर -गरीब की बढ़ती रही ।


नौजवान गुमराह हो रहे ।

दूसरों के इशारों पर अपनों को ही लूट रहे ।

कत्ल देखती सामने पुलिस होता हुआ ।

करने वाले का पर्स पैसों से भरा ।


पैसे देकर जुबानें खरीदी गई ।

ईमान खरीदा गया इज्जतें बिकने लगी ।

देश उन्नति के चरणों को छूने लगा ।

देखते-देखते क्या-क्या होने लगा ।


नारी उत्थान के नाम के लिए नारी सड़कों पर आ गई।

 कल तक थी जो शोभा घर की ..आज बाजारों में छा गई ।

चोर डाकू लुटेरे नेता हैं बने ।

देश को लूट कर अपनी जेब भरने लगे ।


ना गुरु ....ना कोई शिष्य रहा ।

ज्ञान बिकने लगा और खरीदा गया ।

 बहन भाई मां-बाप रिश्तों की परिभाषा है बदली ।

क्या सोचा था ....क्या -क्या होने लगा है ।


मेहनत की कमाई से लोगों का बनता ....ना कुछ ।

काला धन सफेदी का दम खम भरने लगा।

चरित्र चीर -चीर हो गये ...

सम्मान, स्वाभिमान ना जाने कहां खो गये।

कुपात्र को पूजने लगे।

 पापी की जय-जय करने लगे।


देश उन्नति के चरणों को छूने लगा। 

देखते-देखते उन्नति के नाम पर क्या-क्या होने लगा ।

एक तरफ अमीरी बढ़ी तरफ एक गरीबी बढ़ने लगी ।

कोई हंसता रहा ...कोई रोने लगा ।


कभी ठंड से ठिठुरते तो कभी लू से जलते रहे ।

कभी बाढ़ में बहते ...कभी दब गए भूकंप से।

 कभी आंतक के हाथ से मरते रहे ।

मजबूर पिसते रहे मतलबी ... हंसते रहे।


 पीर पराई को जाने ना जमाना ।

दर्द जिसका...वहीं जानता।

 दोस्ती मतलब से हो गई ।

 प्यार की कश्ती मझधार में खो गई ।


 वफा दुनिया से इस तरह उठ गई।

 दुनिया मतलब से मतलबी हो गई ।

 भीड़ में रहकर भी इंसान अकेला रहा।

 साथ चलने वालों से भी सिमटा रहा। 


मिलावट बढ़ने लगी।

 महंगाई छलने लगी।

 मेहनत करता कोई

फल कोई ले जाता है ।


गरीब हर रोज बेमौत मारा जाता है।

देश उन्नति के चरणों को छूने लगा है।

 देखते-देखते क्या कहने लगा है ।

ऊंची -ऊंची इमारतें आकाश छूने लगी ।


झोपड़ी गरीब की रोने लगी ।

हिम्मत पाखंड की इतनी बढ़ गई ।

इंसान क्या.... भगवान को भी बेच कर झांसा दे गई।

भगवान के नाम पर क्या- क्या होने लगा।


 धर्म के नाम पर लोग कटते- मरने लगे ।

आतंक फैलाने को जगह-जगह बम फटने लगे ।

बरसात -सी चलती गोलियों में एनकाउंटर चलने लगे।

इस आग में बस कमजोर ही मरता रहा।


 बच्चे बिलखते रहे मायें रोती रही।

इंसानियत हर तरफ शर्मसार होती रही।

अपनों का अपनों पे जुर्म बढ़ता रहा।

प्यार नफरतों की भेंट चढ़ता रहा।


 रोज कहीं कर्फ्यू हड़ताल हो जाती है।

 कुछ लोग खुश है इसी बहाने चलो अच्छा है।

 छुट्टी...... हो जाती है ।

वह नहीं जानते कि हम... क्या खो रहे हैं ।


ज्ञानी समझा -समझा के तस्वीर हो गए हैं ।

मूर्खों से भर गया देश  ।

छोड़ गये... अंग्रेज पीछे देसी अंग्रेज।


ईमानदारी शर्मसार है।

 सच्चाई भूखों मर रही ।

स्वाभिमान के मरने पर देश उत्सव मना रहा ।

हमारा भारत खुद को महान बता रहा।


कोई किसी का दर्द सुनने वाला नहीं ।

स्वार्थी हर इंसान हो गया ।

दहेज की आग में अब भी बेटी जल रही।

 लड़कों की बोली पैसों से आज भी लग रही।


 लड़का जीरो हो फिर भी हीरो बना रहा ।

दसवीं कर ना सका फिर भी एमबीए लड़की से ऊपर रहा।

लड़की होना ..एक सजा से कम नहीं।

नारी समितियां और कानून शोर तो मचाते हैं।

लेकिन भ्रूण हत्या को वो भी नहीं रोक पाते हैं।


 बेटियां बहुएं बना घर से निकाली जाती है ।

नारी समितियां भी कुछ देर शोर मचाती है ।

बस कानून बनते हैं और साथ में,

कानून तोड़े कैसे यह सुझाव पहले आ जाते हैं ।


फिर जनता धरने देगी हड़ताल करेगी ।

गवाही पैसा देखते ही अपना मुंह बंद करेगी ।

डॉक्टर जिन्हें भगवान का दर्जा मिला ।

वही जीवन देने के बदले जिंदगी ले रहा।


 सरकारी संस्थानों का मरीज धंधा बना ।

 गरीबों के अंगूठे ,दिल या हो फेफड़े चोरी से बिक रहे।

ऊपर से लाखों के बिलों का कर्जा चढ़ा ।


 नौकरी करता जो सरकार की सरकार को ही वो चूना लगाने लगा ।

 इंसानियत का खून चूस कर देश किस विकास को पाने लगा।

स्कूल कॉलेज शिक्षा की दुकानें बन गई ।

पढ़ाई के नाम दिमागी जालसाजी चल रही।


अनगिनत संस्थाएं बन गई ट्यूशन ज्ञान की ।

ना पढ़ने- पढ़ाने का मन।

सिनेमा ने दिखाए अजब ही ढंग।

फैशन में दुनिया ....यह कैसी हवा है चली।

नग्नता से जीवन शैली आधुनिक हुईं।


गरीब के नाम पर अमीर धन ऐंठते।

 फिर परोपकार के नाम पर दे वापिस प्रशंसा लूटते।

कत्ल ,चोरी लूट -बलात्कार बढ़ने लगे ।


अपनों पर ही किसी को भरोसा नहीं।

नौकर मालिक को मार मालिक बनने लगे।

 जुर्म करने वाला ही आज पोषक बना ।

कुछ औरतों की बेशर्मी ने नारी को लज्जित किया।

 कुछ की चुप्पी ने अपराधियों का दम भरा।


साड़ी भी जींस से शर्मा गई।

 या यह कहे भारतीय नारी को भी जींस भा गई ।

ज्ञान की सारी परिभाषाएं बदल गई।

वट्सऐप- फैसबुक -ट्विटर की दुनिया आ गई।


आती नहीं ए. बी. सी. क्या क ख ग...

 लेकिन बोलते हैं ऐसे जैसे हर विषय पर पीएचडी हो गई।

पुरुषों का हाल तो देखो पुरुषता से वंचित हुआ है।

केवल पुरुष होने पर ही इतरा रहा है।


फैशन पूरा लेकिन बेरोजगार होकर फिर रहे ।

मां बाप को असुविधाओं के लिए कोस रहे।

दुनिया भर की बुराइयां खुद में समेटे तन के चलते ।

 कोसते हैं जिन्होंने जन्म दिया ।

भगवान ने क्यों ...अमीर घर में पैदा किया।


झूठ का मीडिया में बोलबाला हुआ।

सच्चा बोला तो आज भी मुंह काला हुआ।

मर चुका पौरुष पुरुष का ।

औरत की मरी है मर्यादा।


 जिसको था पूजा जाता ।

वो अधर्म का था.. ज्ञाता।

आज माता भी स्वार्थ से हुई कुमाता।

 दयावान- गुणवान- बुद्धिमान की सुनता न कोई।

सच्चे इंसान को दुनिया में पूछें न कोई।


देश भक्ति का जज्बा कहाँ खो गया।

चौकीदार न जाने कब चोर हो गया।

देश का नेता देश का दुश्मन बना।

 देश की लुटिया अपने हाथों डुबो रहा ।


मोड़ रहा देश को घोटालों की ओर ...

सबसे बड़ा लुटेरा महान हुआ है ।

सत्य- न्याय कछुए की चाल चल रहे है ।

कपट झूठ मैराथन कर रहे हैं।


 महंगाई आसमान छू रही हैं।

रक्षक ही देश के भक्षण हुए हैं।

अपने देश का अपमान कर।

दुश्मन देश को खुश कर रहे हैं।


 लगता है अंतिम चरण सृष्टि का आ गया है।

विनाश कोरोना बन दुनिया पर छा गया है।

फिर ....दिखेगा धूमकेतु 

काल ...विजयी हो जाएगा ।


दुनिया से असत्य -अत्याचार -अनाचार का नामो निशान मिट जाएगा।

 भ्रष्टाचारी और अत्याचारी खाक हो जाएगा।

नए युग अविर्भाव नूतन समय लायेगा।


 सत्य ईमानदारी पूजें जायेंगे।

हर कोई सुख पायेगा ।

इंसानी भेद भाव मिट जायेगा ।

 दिनकर भी शीतलता पहुंचेगा।

 मानवीय पीड़ा का सर्वनाश हो जाएगा ।


सत्य -अहिंसा का गान होगा।

स्वाभिमान फैलता जाएगा।

 पुरुष और नारी का एक सा सम्मान होगा।

उस दिन भगवान भी धरती पर मुसकुरायेंगे।


अत्याचारी खेल का सम्पूर्ण नाश होगा।

फिर किसी निर्दोष पर जुल्म सितम ना होगा ।


बेकारी मिट जाएगी फिर न भ्रष्टाचार होगा।

 दुनिया की किताब से अन्याय का अक्षर ही मिट जाएगा। 

नारी के सम्मान और माता -पिता की सेवा में हर घर खुशहाल होगा ।


रिश्तों में विश्वास भर जाएंगे।

 ईश्वर के समान गुरु का सम्मान होगा ।

धर्म के नाम पर जंग नहीं होगी ।

ऐसा समय जब तक न लाओगे।

अपने भारत महान  को महान भारत कैसे बनाओगे।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy