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Akaash ydv Dev

Tragedy

4  

Akaash ydv Dev

Tragedy

किट्टू

किट्टू

6 mins
335


संडे था,गौरव और प्रगति हर हफ्ते की तरह किट्टू की अलमारी को सेट कर रहे थे..!!!एक एक कर सारे कपड़े बड़े ही करीने से सजा सजा कर तह लगा रहे थे...की तभी एक लाल फ्रॉक पर प्रगति की नज़र ठिठक गई,गौरव भी एक दम से प्रगति की ओर देखने लग गया ।


"क्या हुआ प्रगति..कहाँ खो गई?"


"कुछ नहीं... याद है जब मॉल में इस फ्रॉक के लिए पैसे कम पड़ गए थे, तो तुमने अपने लिए खरीदे एक टी शर्ट वापस मोड़ दिया था,कितनी खुश हूई थी हमारी किट्टू...अपनी लाल फ्रॉक को पाकर ।लेकिन जब दूसरे दिन उसे ये बात पता चली की तुमने वो टीशर्ट वापस कर दी थी.....तो खुद से ही नाराज़ हो गई थी और पूरे दिन कुछ न खाया था। "


"हां..." प्रगति,किट्टू की हर बात याद है मुझे !


फिर उसी के बगल में रखी ब्लेक कलर की जीन्स की पेंट और सफेद शर्ट को हाथ मे लेते हुए गौरव बोला- "और इसे भूल गई क्या?"इसके लिए कैसे फैल गई थी वहीं दुकान में ही..और बहुत जिद करने के बाद एक साइज़ बड़ी ड्रेस ख़रीदवाई थी अपने लिए...कितना वेट करना पड़ा था न उस दिन ?"


इस तरह प्रगति और गौरव अपने पुराने दिनों को याद किये जा रहे थे ।तभी प्रगति बोली...कितने सुंदर सुंदर ड्रेसेस हैं किट्टू के और हर ड्रेस की अपनी अलग अलग कहानी है ।"


"किसी को दे दें क्या?यहां तो अलमारी में ही रखे रह जाएंगे"


गौरव गहरी सांसे लेते हुए बोला- "हां हां दे ही देना चाहिए!", पर देंगे किसको?"


प्रगति कपड़ो को तह लगाती हुई बोली -"हम लोगों ने भी तो अपने भाई बहनों के कपड़े पहने हैं, क्यों न सुंदर भइया की बेटी खुशी को दे देते हैं,वो भी तो 7-8 साल की हो गई है,उस मे बिल्कुल फिट बैठेंगे, बिल्कुल परी दिखेगी इन कपड़ों में वो। 


गौरव भी प्रगति की बातों में हां में हां मिलाते हुए बोला - "हां सही कह रही हो तुम,वैसे भी किट्टू ने इन कपड़ों को एक दो बार ही तो पहना है!"


प्रगति-"हां चलो तब कल सुबह ही सुंदर भइया के घर चलते हैं मिल भी लेंगे काफी समय से देखा नही उन्हें, इसी बहाने ये कपड़े भी खुशी को आएंगे ।


गौरव- "हाँ ठीक है,मैं दफ्तर जाते समय तुमको ड्राप कर दूंगा और वापसी में लंच टाइम तक लेता आऊंगा!"


अगली सुबह जल्दी से तैयार हो कर गौरव और प्रगति तैयार हुए और इसी शहर में रहने वाले अपने सुंदर भईय्या से मिलने के लिए निकल गए सुंदर जायसवाल... प्रगति के मामा के लड़के थे और इसी शहर में एक फैक्ट्री में नौकरी करते थे। सोमवार को सुंदर का रेस्ट होता था,इसीलिए भी प्रगति और गौरव ने उनके घर आने के लिए सोमवार का दिन चुना था। सुबह सुबह अपने बहन बहनोई को अपने दरवाजे पर देखते ही सुंदर के चेहरे पर खुशी की चमकीली मुस्कान चमकने लगी और बडे ही गर्मजोशी से उनका स्वागत किया।


चाय नाश्ते के बाद गौरव बोला- "सुंदर भइया अब मैं इजाजत चाहूंगा मेरे दफ्तर का समय हो गया है, प्रगति को छोड़े जा रहा हूँ,लौटते वक्त लेता जाऊंगा!'


सुंदर भी बड़ी ही आत्मीयता के साथ बोला -"अरे इसमे बोलने वाली क्या बात है?"ये घर भी अपना ही तो है,प्रगति और मैं सगे भाई बहन तो नहीं लेकिन सगे से एक इंच भी कम भी नही हैं ।


इस बात पर प्रगति बहुत भावुक हो गई और उसकी आंखें छलछला गई,सुंदर ने भी प्रगति को बड़े लाड़ से अपने सीने से लगा लिया और उसके सिर पर हाथ फेरने लगा। सुंदर की पत्नी सीमा किचन में बर्तन साफ कर रही थी। 


तभी गौरव ने कहा - "अरे प्रगति खुशी का तोहफा तो तुमने खुशी को दिया ही नही?"

सुंदर भी थोड़े अचरज से प्रगति की ओर देखने लगे...क्यों कि आज न तो खुशी का बड्डे था और ना ही ऐसा कोई इवेंट की खुशी को कोई तोहफा दिया जाता ।


"वो भइया घर की अलमारी में अपनी किट्टू के कपड़े रखे हुए थे ,जो हमारे अब किसी काम के नही,इसीलिए हमने सोचा कि अपनी खुशी के काम आ जाएं,वहां भी तो अब पड़े ही हुए थे!" गौरव मुस्कुराते हुए बोला ।


प्रगति भी अपनेपन के साथ बोली - " वैसे भी हम अपनी शहज़ादी के कपड़े किसी शहज़ादी को ही दे सकते है!"


सुंदर झेंपते हुए मुस्कुराया और झिझकते हुए खुशी को बुलाने अंदर किचन में चला गया, खुशी वहीं पर अपनी मम्मी के पास खेल रही थी ।किचन में सीमा भी उनकी बातें सुन रही थी ।


सुंदर के अंदर पहुंचते ही सीमा की आवाज़ गौरव और प्रगति के कानों पर पड़ी - "अपनी बहन को कह दो ज्यादा महान न बने,हमारे इतने बुरे दिन भी अभी नही आए की इनके बेटी के उतरे हुए कपड़े पहनाएं अपनी बच्ची को!कपड़े हैं ये कोई ऑर्गन नही जिनके लिए कोई लाइन लगाए खड़ा हो...जरा भी नही सोचा और खुद महान बनने के चक्कर में ये मियां बीवी अपनी नन्ही सी मरी हुई बच्ची के शरीर का चीर फाड़ कर उसके ऑर्गन को डोनेट कर दिये थे,हम इनकी तरह पत्थरदिल नही ।जाओ कह दो उनसे हमें "उनकी मरी हुई बेटी" के कपड़े नही चाहिए।"


प्रगति डबडबाई आंखों से गौरव की ओर देख रही थी और गौरव ,गौरव के आंखों के किनारे भी आंसू की बूंदें चमक रही थी ।


वे दोनों चुपचाप बोझल कदमों से सुंदर के घर से बाहर निकल गए...........बाहर निकल कर अपनी कार में बैठ कर दोनो अब "अपने घर" आ रहे थे

प्रगति के दिल और दिमाग मे वो भयानक मंजर बार बार आ रहा था


चार साल पहले, गौरव प्रगति और किट्टू के साथ उसके जन्मदिन की खरीददारी कर के वापस लौट रहे थे,की तभी रास्ते मे उन्हें एक "केक शॉप" मिल गया ,प्रगति ही बोली थी कार रोकने के लिए ।कार को सड़क किनारे पार्क कर के प्रगति और गौरव किट्टू को कार में ही छोड़ कर चले गए थे केक लेने,और किट्टू ,किट्टू अपने कानों में इयरफोन लगाए मोबाइल में कोई कार्टून देख रही थी ।जाते जाते प्रगति ने एक बार मुस्कुरा कर देखा था अपनी किट्टू को और बोली बेटा आप बैठो हम अभी आते हैं दस मिनट में ...और फिर टायरों और ब्रेकों की चरमराहट के साथ एक भयंकर आवाज़ गुंजा जिससे पूरा वातावरण दहल उठा, साथ ही दहल उठे वहां के लोग भी ।एक बड़ी सी ट्रक ने सीधी टक्कर मारी थी उस कार में...और कार के साथ साथ प्रगति और गौरव का सब कुछ बिखर गया उस हादसे में ।गौरव तो बेहोश ही हो गया था...जबकि प्रगति,प्रगति पत्थर की बूत बनी सब कुछ अपलक देखे जा रही थी ।


किट्टू डैशबोर्ड में फंसी हुई गाड़ी के पिछले सीट की तरफ आ चुकी थी, उसकी आंखें निस्तेज थी,जीवन के कोई लक्षण तक न दिख रहे थे ।अचानक से ब्रेक लगने से प्रगति की तन्द्रा भंग हुई...वे अब अपने घर पहुँच चुके थे और उन्होंने देखा दरवाजे पर खड़ी उनकी किट्टू मुस्कुरा रही है....और शिकायत भरे लहजे में कह रही है, मम्मी मैं क्या सच मे मर गई हूं जो आप लोग मेरे सारे कपड़े खुशी को देने चले गए थे ?


कार के दरवाजे को खोलते हुए गौरव बोला -" प्रगति चलो अंदर ,देखो हमारी "मरी हुई किट्टू" हमारा इंतजार कर रही है ।।



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