STORYMIRROR

karan ahirwar

Abstract Romance Tragedy

4  

karan ahirwar

Abstract Romance Tragedy

ख्याल

ख्याल

1 min
171

जनवरी की सर्द रातों में

एक ख्याल है जो मुझे गरमा रहा है

कबसे सोच रहा इस संकट को

मामूली मालूम हो रहा लेकिन

पहाड़ों को नीचा दिखा रहा है


आज नए आयाम, नयी राहों की खोज में

प्राप्त समाधान को खो दिया

अच्छा बनने चला था घर से

खुद को बदतर बनाकर लौटा हूं


तेरी, मेरी, उसकी सबकी सोच जमी है

सौ फुट अंदर जमीन मे धसी है

पता नहीं कब कोई इसमें खुदाई की

सोच भी ला पाएगा

तू यही रुक, मैं खुद को बढ़ा कर आता हूं

फिर जमी बर्फ को भी पानी डालके पिघालेगे


ये बातें नादानियत से भरी है

और सच्चाई से अनजान भी


मेरी कमियां डसती है मुझे

पाप को ही जीतते देखा है

पुण्य तो डर डर के जीता है

और मैं भी


अब आजादी को अपने से दूर जाते देख रहा हूं

क्योंकि मेरी उम्र सलाखों से मुहब्बत कर रही है

जिम्मेदारियों से वादा कर रही है वस्ल का 

 लेकिन नादानी के आगोश में बीत रही है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract