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karan ahirwar

Drama Romance Fantasy

4  

karan ahirwar

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तुम्हारा खत

तुम्हारा खत

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अंदर से अकेला हूं

अब तुम्हारी याद नहीं आती

पर दिल करता है एक बार देखूं तुम्हें

और पूछूं

कैसी हो तुम


3 साल हुए तुम्हे देखे

तुम्हारी एक टक नज़रों से सामना हुए

अब तुम्हारी याद नही आती

अब तुम्हारे सपने नही आते


ना ही किसी और के

जबसे तुम्हे पाने की आस खोई

सब कुछ खो गया

आज तक नहीं उभर पाया

 उस अकेलेपन से


आज भी किसी के बारे नही सोच पाता

जब भी बैठता हूं दोस्तो के बीच

तुम ही होती पहला सवाल सबका

मुझसे पूछते है हाल तुम्हारा

अब कैसे बताऊं उन्हें


तुमने ही नही कभी मेरा हाल ना जाना

तो मैं कैसे कुछ कर पाता

बस एक ही चाहत थी मेरी

तुमको जिंदगी में लाने की

तुमको चाहने की


अधूरी रह गई

पता नहीं ये क्या है पर जो भी है

मुझे किसी और का होने का

मन ही नहीं करता

कुछ तो किया है तुमने

अब ये तो तुम ही जानो


हर ग़ज़ल में कहीं न कहीं तुम्हार चेहरा है

मैं याद नहीं करता तुम्हें

बस कभी गुस्सा आता है

कभी हँसी आती है अपने आप पे

मुझे पता है तुम अब कभी नहीं आओगी

लेकिन दिल हैं कि मानता नहीं


अगर चाहो आना पास कभी

या चाहिए हो रास्ता किसी मुश्किल का

हाजिर रहूंगा मैं बशर्ते

परिस्थिति बनाना तुम।


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