फूलों से प्यार
फूलों से प्यार
दिल था कुछ उदास उदास, कुछ दर्द सा एहसास
जैसे अंदर ही अंदर कुछ चुभ रहा था
दोस्त की महफिल मैं मच रहा था खुशियों का शोर
जाम से जाम टकरा कर बातें बन रही थी
और मैं एक कोने में चुप चाप
अपने अंदर खो कर कुछ उलझन से निपट रही थी।
पीछे से आया हँसी का फुहार
किसी ने पूछा कहाँ खोये हो यार ?
आँखों की नमी को छुपा के जरा मुस्कुरा के
गुलदस्ता के और नजर फेरे बात को घुमा के
शायराना अंदाज़ में मैंने कहा
ज़िन्दगी हसीन बहुत है यार
शायद मुझे फूलों से है बेहद प्यार।
इसमें कौन सी नयी बात है दोस्त
फूलों से प्यार और उनकी रंगों से दीदार ,
ये तो हर आशिक़ करता हैं
अपने मुहब्बत को फूल जैसा कहता है
उनकी खूबसूरती से प्यार की रंग मिलाकर
न जाने कितने नज्म बनाता हैं।
महफिल किसी और ओर जा रही थी
और मैं फूलों से और उलझ रही थी
शायद मेरा फूलों से रिश्ता सिर्फ नज्म तक नहीं
और भी गहरा है।
खामोशी मैं अक्सर फूलों से बात करती हूँ
फूलों के रंगों से ज़िन्दगी की हर रंग ढूंढ लेती हूँ
कुछ रंग जो कभी न खिले ,
कुछ जो छूट गए ,
और कुछ छूट रहे हैं
वह सरे खोये हुए रंग, मैं कभी कभी फूलों से उधार लेती हूँ
उनके खुशबू से ख्वाब और ख्वाहिशें हमेशा ताजा रखती हूँ।
वो पतझड़ की शाम था, मेरा बगीचा सुना था
पर दिल हरा भरा, फूल बन के जैसे कोई आया था
मन में महक और तन में रंगों का बौछार था
पतझड़ से सावन फिर न जाने कब तक रूठना मानना चलता चला
उल्फत से उलझन बहुत हुयी
पर मेरा फूलो से प्यार का दास्ताँ चलता रहा।
उन दिनों जब में रात भर रोई थी
अपने हर वह ख्वाहिशें टूट रही थी
सबेरे सबेरे खिड़की के उस पार
ढेर सारे गुलाबी रंग के गुलाब मुझे देख रहे थे
दिल छोटा न कर रंग और भी बहुत है ज़िन्दगी में
जैसे वो मुझे बोल रहे थे।
पलकों में कुछ ऐसे लम्बी रातों को समेट कर
उस दिन जब में सुबह की किरण से नहाते हुए
यूँ ही लाल गुलाबों को निहार रही थी
कुछ नए नए कलियाँ ख़ुशी से झूम रहे थे और
दूसरी दाल में एक सूखे हुए गुलाब को सत्ता रहे थे
थोड़ा हंस के सूखे हुए गुलाब ने मुझसे कहा
ये नासमझ है सच्चा प्यार से न ख़बर है
इन्हें ये न पता की में सुख रही हूँ पर खुश नसीब हूँ
मेरा माली के लिए अभी भी मैं कली जैसा हूँ
मेरे सूखे हुए पंखुड़ियों को समेटना , मेरे टूटने से उसे दर्द होना
ये मुहब्बत है सच्चा जो उम्र की बेरंगी में
प्यार की हर रंग महसूस होती है।
शाम बढ़ रही थी महफ़िल और जम रही थी
मेरी नजर बार बार वह गुलदस्ता पे अटक रही थी
वो नीली रंग के गुलाब और रात की रानी
जैसे फुट फुट कर कुछ बोल रहे थे
और उन पे मेरा हक़ जता रहे थे .
मैं जाम में डूब रही थी, पीने की जैसे आदत डाल रही थी
हक़ीक़त को दिल में दबा के
नशे की आड़ में मुस्कुरा के बार बार बोल रही थी
ज़िन्दगी हसीन बहुत है यार
शायद मुझे फूलों से है बेहद प्यार।
