पगली जो है
पगली जो है
कोशिश तो बहुत की थी
उसे समझाने की
मगर पगली समझती ही नहीं
सोचता हूँ कैसे समझाऊँ उसको
जो समझती तो सब है
लेकिन जताती है जैसे कुछ समझी नहीं
मैंने तो बस इतना कहा था कि
रास्ता चुना है जो उसने
भरा हैं कांटों से क़दम कदम
सफर ग़र पूरा हो भी जाए तो क्या
मंजिल फिर भी नहीं मिलेगी
पिछली मुलाकात में भी
यही तो कहा था कि
रास्ते अब जुदा होने चाहिए हमारे
क्योंकि जिस पर मरती है वह आज भी
पांव थक गए हैं उसके
धड़कनें भी जाने कब दग़ा दे जाएँ
सांसें भी मेहमान हैं कुछ पल की
साथ अब वह चल न पायेगा दूर तक
बेहतर होगा अगर तलाश करे
इक नए हमसफर की
शायद पता ये सब उसको भी है
इसीलिए रूठना भी छोड़ दिया
खफा होने की जगह
अब बस मुस्कुरा देती है
मालूम है उसको भी
जिसे ख़ुद से ज़्यादा चाहती
मेहमान है चंद पलों का।