"दुःख-मुख"
"दुःख-मुख"
इस संसार में बस दुःख ही दुःख है
सबके ही अलग-अलग दुःख मुख है
किसी को यहां पर तन का दुःख है
किसी को यहां पर पैसे का दुःख है
कोई पैसे कमाने में इतना मशगूल है
वैसे पता ही नहीं क्या होता सुख है?
किसे रिश्तेदार होने का बड़ा दुःख है
किसे अनाथ होने का बहुत दुःख है
इस संसार में बस दुःख ही दुःख है
सबके ही अलग-अलग दुःख मुख है
संसार में हर दुःख उपाय, सम्भूत है
मन दुःख का उपाय न फलीभूत है
कोई यहां स्वार्थी इंसानों से दुःखी है
कोई अपने आप से ही बहुत दुःखी है
सर्व दुःख एक इलाज, सच्ची हंसी है
खो गई, भीड़ में आज सच्ची हंसी है
वो सफलता रथ पर होते आरूढ़ है
जो दुःख मानते, लक्ष्य पास धूल है
पतझड़ में घटाएं आती झूम-झूम है
जो दुःख को कहता सावन धूप है
जो दुःख को माने कर्म प्रेरणा संदूक है
वो एक दिन बनते गगन पक्षी गरुड़ है
यहां पर दुःख की रहती जिन्हें भूख है
उन्हें ईश्वर देता नहीं कभी यह दुःख है
इस दुःख पर बलिहारी जाते वे मुख है
जिन्हें राम-राम नाम रटाता यह दुःख है
गर मनु दुःख से पहले ही हरि-हरि जपे
,फिर दुःख क्यों आयेगा, उनके सम्मुख है
