और हँस-हँस कर जीने पर, कब पूरी हो चली, पता भी नहीं चली, रो कर कब तक हम इसे काटेंगे यारो, मुस्कर... और हँस-हँस कर जीने पर, कब पूरी हो चली, पता भी नहीं चली, रो कर कब तक हम इसे का...
बेगानी शादी में दीवाना, अब्दुल्लाह , अब नज़र नहीं आता। बेगानी शादी में दीवाना, अब्दुल्लाह , अब नज़र नहीं आता।
कविता पोवारी भाषा (हिंदी की उपभाषा) में लिखा है। कविता पोवारी भाषा (हिंदी की उपभाषा) में लिखा है।
न चले आपके बताये पथ पर गलतियां भी हमसे हुई हैं न चले आपके बताये पथ पर गलतियां भी हमसे हुई हैं
आज हर चेहरा दुःखी है किसी चेहरे पे न हंसी है! आज हर चेहरा दुःखी है किसी चेहरे पे न हंसी है!
जब हमारा ये तन दुःखी होता है तब हमारा हरकर्म धूमिल होता है! जब हमारा ये तन दुःखी होता है तब हमारा हरकर्म धूमिल होता है!