कारो मातीका पोवार
कारो मातीका पोवार
कारो मातीका पोवार, राबसेत राजा रानी |
पुरो देशको पोशिंदा, पर दुःखी जींदगानी ||धृ||
आयी होती मालवालं, संग संस्कृती धारकी |
सोड़शानी तलवार, सजी खेती पोवारकी ||
बैनगंगा सहारालं, सुरू भयी जींदगानी ||१|| पुरो...
पयलोच बारीशकी, ओढ सबला रव्हसे |
बाट चातक सरीखी, कास्तकार बी देखसे ||
सोच-सोच थक जासे, कसी होयेतं किसानी ||२|| पुरो...
रोहिणीको बेरापर, वऱ्या दिससेती ढग |
खेतीकाम करनकी, सुरु होसे लगबग ||
खेतं किसान राजाला, हात बटावसे रानी ||३|| पुरो...
देख ढग बादरमा, खुश होसे कास्तकार |
सुरु कर खरपळा, देसे बांधीला आकार ||
गाड़ोलाई धुरा फोड़ं, बनावन गाड़दानी ||४|| पुरो...
मंग खेतमा फेकसे, गाड़ोलका शेणखात |
करं बांधीमा चिराटा, वला बईल को साथ ||
तोर लगावसे रानी, धुरा पारी करशानी ||५|| पुरो...
खारी भर मोहतूर, करं मिरुगको दिन |
कास्तकार मेहनत, करं देवको स्वाधिन ||
बड़ी आस फसलकी, घर नही दानापानी ||६|| पुरो...
मिरुगको पाणीलका, दाना अंकुरे मातीमा |
खुश होसे कास्तकार, देख फसल बांधीमा ||
हर साल पिकावसे, चाहे होय जाये हानी ||७|| पुरो...