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Govardhan Bisen 'Gokul'

Abstract Tragedy Others

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Govardhan Bisen 'Gokul'

Abstract Tragedy Others

पुरो देशको पोशिंदा

पुरो देशको पोशिंदा

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(वर्ण संख्या - १६, यती - ८)


कारो मातीका पोवार, राबसेत राजा रानी।

पुरो देशको पोशिंदा, पर दुःखी जींदगानी।। धृ।।

पयलोच बारीशकी, ओढ सबला रव्हसे।

बाट चातक सरीखी, कास्तकार भी देखसे।।

सोच सोच थक जासे, कसी होयेतं किसानी।

पुरो देशको पोशिंदा, पर दुःखी जींदगानी।। १।।


रोहिणीको बेरापर, वऱ्या दिससेती ढग।

खेतीकाम करनकी, सुरु होसे लगबग।।

खेतं किसान राजाला, हात बटावसे रानी।

पुरो देशको पोशिंदा, पर दुःखी जींदगानी।। २।।


देख ढग बादरमा, खुश होसे कास्तकार।

सुरु कर खरपळा, देसे बांधीला आकार।।

गाड़ोलाई धुरा फोड़ं, बनावन गाड़दानी।

पुरो देशको पोशिंदा, पर दुःखी जींदगानी।। ३।।


मंग खेतमा फेकसे, गाड़ोलका शेणखात।

करं बांधीमा चिराटा, वला बईल को साथ।।

तोर लगावसे रानी, धुरा पारी करशानी।

पुरो देशको पोशिंदा, पर दुःखी जींदगानी।। ४।।


खारी भर मोहतूर, करं मिरुगको दिन।

कास्तकार मेहनत, करं देवको स्वाधीन।।

बड़ी आस फसलकी, घर नहीं दानापानी।

पुरो देशको पोशिंदा, पर दुःखी जिंदगानी।। ५।।


मिरुगको पाणीलका, दाना अंकुरे मातीमा।

खुश होसे कास्तकार, देख फसल बांधीमा।।

हर साल पिकावसे, चाहे होय जाये हानी।

पुरो देशको पोशिंदा, पर दुःखी जिंदगानी।। ६।।


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