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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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यमराज का देहदान

यमराज का देहदान

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यमराज का देहदान 
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अभी अभी मेरे मित्र यमराज पधारे 
खुश इतना थे जैसे तोड़ लिए हों चाँद तारे।
मैंने हमेशा की तरह प्यार से बिठाया, जलपान कराया 
और चाय न पिला पाने का खेद भी 
साथ में व्यक्त कर दिया,
स्थानापन्न व्यवस्था के नाम पर एक गिलास सत्तू
नमक मिर्च के साथ घोल कर दिया,
बंदा बड़ा होशियार निकला 
और सत्तू का महत्व शायद जानता था 
इसीलिए बड़े भोलेपन से एक गिलास और माँग लिया,
लगे हाथ मेरे हिस्से का भी बेशर्मी से गटक गया,
कोई बात नहीं आखिर मेरा यार है, 
तो उससे कैसा गिला- शिकवा?
थोड़ी देर तक अपने पेट पर मस्ती से हाथ फेरता रहा,
मेरी तारीफों के पुल बनाया रहा,
आनंद आ गया प्रभु, एकाध कुंतल मुझे भी दे दो,
मैंने पूछा - तू इतना क्या करेगा?
वाह प्रभु! इतना भी नहीं जानते 
या जानबूझकर नहीं समझते।
अपने चेले चपाटों के लिए ले जाऊँगा 
अपने साथ-साथ उन्हें भी गर्मी भर
रोज एक -एक गिलास पिलाऊँगा
और मिलकर खूब आनंद उठाऊँगा।
पर प्रभु! आप मेरा एक काम कर दीजिए 
मेरे भी देहदान का सार्वजनिक ऐलान कर दीजिए,
कागजी खानापूर्ति भी लगे हाथ करवा दिया 
और एक प्रमाण पत्र भी दिलवा दीजिए।
मैं यमलोक में देहदान जागरूकता अभियान चलाऊँगा
यमलोक में भी देहदान की ज्योति जलाऊँगा,
अपना जीवन धन्य बनाऊँगा,
अपने राष्ट्र-समाज के कुछ तो काम आऊँगा।
यमराज की बातें सुन मेरी आँख भर आई,
मैं कहने को विवश हो गया - तू सचमुच महान है भाई।
वास्तव में तेरी सोच ऊँची है 
लोग तुझसे डरते हैं, क्योंकि उनकी नियत खोटी है,
कम से कम तू राष्ट्र- समाज के लिए इतना तो सोचता है
तभी तो देहदान की खातिर आया है,
मन में कोई गिला शिकवा, शिकायत, लालच नहीं 
खुद के देहदान की खातिर पवित्र मन के साथ 
स्वयं ही चलकर आया है,
हम मानवों के लिए एक नजीर भी लाया है
कि यमराज खुद चलकर देहदान के लिए आया है।

सुधीर श्रीवास्तव 


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