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Nehabhai

Abstract

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Nehabhai

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विकल्प

विकल्प

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नहीं होता जब कोई विकल्प, तो एक संकल्प होता है.

दूर से दिखता कोई अलाव भी कुछ गर्मी देता है.

ना किसी घटना की खबर होती है और न किसी रस्ते का पता.

बेपरवाह चल पड़ते हैं पैर उस अलाव को मंजिल मानकर.

कोई रु-ब-रु लौ की गर्मी से हो जाते हैं.

बन जाते हैं लौह पुरुष कोई, तपकर, जल कर.

 

पर मतिभ्रम होता है तब, जब विकल्प सामने होते हैं.

संकल्प डगमगाने लगता है और लौ टिमटिमाने लगती है.

अनिश्चित चित जाने कहाँ-कहाँ दौड़ लगा आता है.

जाने क्या-क्या करने की चाह में सब अधूरा रह जाता है.

कहते हैं की उम्र और बुद्धि की कभी भेंट नहीं होती

क्योंकि उम्र रास्ते तलाशती है और बुद्धि मंजिल

 

और यदि उम्र को मंजिल मिल भी गयी,

तो वो उसे बस पड़ाव समझेगी मंजिल नहीं

लेकिन विकल्पों के खुले आसमान में

ना ही मंजिलो के लिया कोई जगह है और ना ही पडावों के लिए

वहाँ तो बस रस्ते ही रस्ते हैं

और हर रस्ते के आखिरी-अँधेरे छोर पर

एक लौ टिमटिमा रही है.


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