धर्म स्थल
धर्म स्थल
अतीत में जाओगे , हम ही को खड़ा पाओगे
धर्म स्थल से हैं हम , हम से है धर्म स्थल
पेड़ों पे चढे बैठे थे तुम, घरों में बसे थे हम
संस्कृति का था प्रभार , देवो का था आभार
भक्ति में थे तब भी लीन , भक्ति में हैं अब भी लीन
देवो की भूमि है , धर्म स्थल में बसी
देते हो तुम हवाला केवल , छे सौ , सात सौ , साल का
बसे हैं हम वहां धरती पे , समय के आरम्भ से
खोखले हैं तुम्हारे दावे , तुम्हारे वादे , तुम्हारे इरादे
झुके हुए थे तुम भी , औरों की तलवार के नीचे ,छ सौ , सात सौ साल पीछे
भुज गए वो भी , जो तुम पे थे हाबी , भुज जाओगे तुम भी , समय के आगोश में
धर्म स्थल ना तुम्हारा था , ना है , ना होगा
समय का इंतज़ार है , तुम्हारा पतन होगा ,
धर्म स्थल स्वतंत्र होगा , अपने भक्तों की भक्ति के लिए
तुम्हारी शक्ति न काम आएगी धरती के प्रकोप से ,
झुक जाओगे तुम भी धर्म स्थल के आगे
मानव हो मानव ही रहोगे
चाहिये तुम्हे कितनी भूमि , अपने पैरों पे खड़े रहने के लिए
नाक के नीचे तुम्हारे धरती है , पर आसमान से ऊंची तुम्हारी मर्ज़ी है
खुल जायेगा धरती का कुक्ष , समा जाओगे तुम उसी में
हाथ न आयगे तुम्हारे कुछ , समय के साथ होगे तुम भी वृद्ध
न देव है तुम्हारे दिल में , न भक्ति
बस युही बह जाएगी तुम्हारी हस्ती
देवो की भूमि से ही होगी बात हमारी ,
तुम न कोई प्रभारी , तुम हो केवल अत्याचारी
धर्म स्थल की गूंज रहि है धरती पे घूम
बिखर जाओगे तुम समय में , करके अपने वंशजो पे ये भूल
धर्म स्थल है प्रार्थना का प्रागण , देवो का है आसन
जो ये न समझो तुम , दिव्य ज्योत को न जानो तुम
भक्तों ने ही दिया तुम्हारे घमंड का ये करण
जो दिया जा सकता है , वो वापस लाया भी जा सकता है
जो छीना जा सकता है , वो खोया भी जा सकता है
तुम ना थे अतीत में इतना पीछे की देवो को छू लो तुम
ना भक्ति है तुम्हारे दिल में ना भक्त हो तुम
सब पड़ जायेंगे तुम्हारे पीछे , बिखर जाओगे तुम
पुकार रही है धरती , धर्म स्थल के भक्तों को
केवल रक्त बहा सकते हो तुम भक्तों की भक्ति का
जो था नहीं कभी तुम्हारा , वो होगा भी नहीं तुम्हारा समय के साथ
इतिहास बन जाओगे तुम , समय के साथ
देवो की भक्ति से ही है मानव की पहचान
जो ये भूल गए तुम अपने आतंक पे सवार
टूट जायगे तुम्हारे अकड़ का ये पहाड़
तन गए हो तुम बहुत , न तो पत्थर हो ,
न पहाड़ , वो भी टूट जाते हैं , धरती के तनाव में
सूरज भी नम हो जायेगा समय के काल में
तुम तो केवल बहार हो , जो चली जाती है हर बदलते मौसम में
धर्म स्थल पृथ्वी का रूप है , तुम करोगे आहाकार कब तक
पृथ्वी जाग उठी है , धर्म स्थल का होगा अब भार
जो न जागे तुम , बह जाओगे तुम पृथ्वी की मार से
धर्म स्थल है भक्तों का , भक्ति के लिए
व्यापर न बनाओ अपने लालच के लिए
झुक जाओगे तुम , जो न समझो धरती के अस्तित्व को
जो ना जानो तुम हम हैं महादेव के भी भक्त
समय बीत जाता है , तुम भी बीत जाओगे , समय के साथ
रह जायेंगे केवल देवो के देव महादेव!