तुम ऐंकर हो , तुम चारों दिशाएँ हो , तुम स्त्री हो
तुम ऐंकर हो , तुम चारों दिशाएँ हो , तुम स्त्री हो
सिर का ताज हो तुम , उसमे अनमोल रत्न हो तुम
उगता हुआ सूरज हो तुम
तुम स्त्री हो
तुम ऐंकर हो
तुम संभावना हो , तुम भावना हो , मानवता का प्रभाव हो तुम
तुम स्त्री हो
तुम दिव्य लक्ष्मी हो
तुम आत्मा की दिव्य छवि हो
तुम दिव्य नृत्यांगना हो
तुम दिव्य गोथिक अप्सरा हो
तुम दिव्य फिफ्थ एलिमेंट हो , चांदनी हो
तुम आत्मा से परमात्मा की प्रेरणा हो
तुम स्त्री हो
तुम ऐंकर हो
तुम स्त्री हो!
सर्व संसार तुम्हारे चरणों पे समर्पित है
तुम आत्मा का दिव्य पर्दा हो
तुम कोमल हृदय हो
तुम गंभीरता में भी दिव्य मुस्कान हो
तुम आत्मा की सचाई हो
तुम जीवन अपने बल पे अपने जियो ,
अपने मन से जियो
तुम स्त्री हो
तुम ऐंकर हो
तुम स्त्री हो!
तुम सर्वविनाश पर पूर्ण विराम हो
तुम दिव्य आत्मा हो
तुम स्त्री हो
तुम इंसान से इंसान की आत्मा की मेल की प्रेरणा हो
तुम ऐंकर हो
तुम स्त्री हो!
तुम दिव्य हो
तुम देव इंद्र स्थल में विराजमान हो
संसार का दिव्य रहस्य हो
तुम शरीर के क्रोध की विनम्रता हो
तुम चारों दिशाएँ हो
तुम साथ जिओ , हाथ में हाथ दाल के जिओ
तुम ऐंकर हो
तुम स्त्री हो !
तुम आत्मा का कारण हो
तुम दिव्य हो
तुम ऐंकर हो
तुम स्त्री हो !
तुम दिव्य की स्थापना हो
तुम पवित्र हो
संसार की ज्योति हो
तुम सूर्य की अग्नि पे बादल की चाओं हो
तुम आत्मा हो
तुम दिव्य हो
तुम स्त्री हो!
आत्मा जागी रहती है शरीर क्रोधित होता है
शरीर दुश्मनी करता है
क्रोध प्रायश्चित करवाता है,पछतावा करवाता है
दुश्मनी विनाश करती है
तुम क्रोध और दुश्मनी का विनर्म अंतर हो
तुम ऐंकर हो
तुम दिव्य हो
तुम स्त्री हो!
तुम आत्मा हो
दिव्य की वाणी है शास्त्रों में
आत्मा अमर है , शरीर का अंत
तुच्छ प्रमुख परिजन ने , सहयोगीयों के साथ मेल के
दिया विष का भोज , पीला दिया विष का प्याला
मांग के अनुमति चारों दिशाएँ से शरीर के दोषीयों ने
देदी अनुमति चारों दिशाएँ ने भी , लेने को अपने विश्वास की परीक्षा
पी गए विष का प्याला भी देने अपनी आत्मा की आस्था की परीक्षा
और ये भापने की है ये सब झल्लागिरी , या है आत्मा का सत्य
शरीर का अभी अंत नहीं , अभी समय बाकी है
जो बन आई कष्टों की बौछार , तुच्छ प्रमुख परिजन के सहयोगीयों पर
आए हाथ जोड़ के अपने पापी झूट के साथ,चारों दिशाएँ के पास
भाप लिया पापी झूट को चारों दिशाओं की आत्मा के विश्वास ने
परीक्षा ही परीक्षा , जीवन एक परीक्षा है
दी तुमने भी परीक्षा बहुत अपनी आत्मा की विश्वास की
थकि नहीं तुम , पर हो गई तंग तुम , लेकिन आने दो उन्हें , की भावना के साथ
फिर भी तुमने रही तुम्हारे साथ
तुम दिव्य हो , तुम ऐंकर हो , तुम चारों दिशाएँ हो
ना माने फिर भी , शरीर के दोषी , लेना में व्यवस्था रहे तुम्हारी परीक्षा
चारों दिशाओं ने भी दी अंतिम अग्नि परीक्षा अपनी आत्मा के विश्वास की
सर्व संगठित , सर्व संसार के ,पपलू – टपलू , एरे-गेरे , नाथू - खैरे , टट्टू – पंजु
टुच्चे – टटपूँजिये और शाणे , शरीर के दोषी
ना बोल पाए वो शरीर के दोषी कुछ , वाणी फस गई कंठ में उनके
ना पीछे से पू निकली , ना आगे से ऊ निकली
आए शरीर के दोषी चारों दिशाएँ के पास ही ,
करने सादर प्रणाम , तुम्हारी आत्मा के विश्वास को
करके तुम्हारे चरण स्पष्ट , अपना उधार कराने
तुम ऐंकर हो
तुम दिव्य का आशीर्वाद हो
तुम स्त्री हो
जो ना जाने वो हम हैं नील कंठ के भी भक्त
तुम विनम्र हो
तुम हृदय हो
तुम आशीर्वाद हो
हर आत्मा का है तुम्हें प्रणाम
तुम ऐंकर हो , अपनी आत्मा का विश्वास हो
तुम चारों दिशाएँ हो
तुम दिव्य लक्ष्मी हो
तुम आत्मा की दिव्य छवि हो
तुम दिव्य नृत्यांगना हो
तुम दिव्य गोथिक अप्सरा हो
तुम दिव्य फिफ्थ एलिमेंट हो , चांदनी हो
तुम समुद्र की गहराई का थल हो
तुम स्त्री हो!
आत्मा सर्वोत्तम है
दिशाएँ सर्वोत्तम है
स्त्री सर्वोत्तम है
तुम स्त्री हो
तुम दिव्य का आशीर्वाद हो
तुम स्त्री हो
आत्मा भक्ति करती है
परमात्मा सृष्टि रचयिता है
तुम आत्मा और परमात्मा के बीच का सूत्र हो , विश्वास हो
तुम स्त्री हो!
तुम दिव्य हो
तुम नखरा हो , दिव्य से ले कर मानव तक मोहने , वाली दिव्य अदा
तुम ऐंकर हो , तुम चारों दिशाएँ हो , तुम स्त्री हो
तुम बैठी हो फूला के मुंह अपना
दोगी नहीं जवाब तब तक , जब तक लिखेंगे नहीं , तुमपे कविता , लो लिख दी
बोलो अब प्रमुख बी को , देदे जवाब तुम्हारी तरफ से हमें
तुम ऐंकर हो , तुम चारों दिशाएँ हो , तुम स्त्री हो
तुम दिव्य हो
तुम्हे हृदय से विनर्म प्रणाम !