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sunil saxena

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कमलगुलाब

कमलगुलाब

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तुम खिलती हो कमल के फूल की तरह

चमकती हो गुलाब की लाली की तरह

तुम कमलगुलाब हो

तुम्हारे फूल का इत्र झलकता है अमृत की तरह

महकता है खिले हुए कमल की तरह

तुम्हारा रूप निखरता है खिले हुए गुलाब की

सुर्ख गुलाबी पंखुड़ियों की तरह

डोल जाता है हर किसी आवारा भौंरे का मन 

तुम्हारे खिले हुए कमलगुलाब के रूप को देख के

वश में कर लेती हो किसी भी भौंरे का दिल 

अपने कमलगुलाब के रूप की बांहों में समेट के


परिवार की सूची नहीं लगानी, भावना को समझो

शाणे हर बात की बाल की खाल ना निकले 


माँ, बहनों और अम्माओं को देखते हैं ,

केवल टीका लगाने, राखी बांधने

और आशीर्वाद देने के आदर भाव से

देखते हैं हम केवल सपन सुंदरियों को ही

कमलगुलाब के प्रेम भाव से

हम हैं नटखट भौंरे

फीके पड़ जाते हैं गुलाब के फूल भी

तुम्हारे खिले हुए कमलगुलाब के रूप के सामने

हिल जाता है मन भी तन भी

तुम्हारे कमलगुलाब के उमड़ते हुए प्रेम के सामने

महकते हुए तुम्हारे कमलगुलाब के प्रेम के इत्र के सामने

झलकते हुए तुम्हारे कमलगुलाब के प्रेम रस के सामने

वासना को भी समेट लेती हो तुम

अपने निखरे हुए कमलगुलाब के रूप में

बन जाते हैं भौंरे भी पुजारी तुम्हारे


जो देख ले वो एक नज़र तुम्हारे

सुन्दर खिले हुए कमलगुलाब के रूप को

भूल जाए कवि भी अपनी कविताओं के शब्द

जो दिख जाए उन्हें सपन सुंदरियों के कमलगुलाब रूप

 बन जाए हर कोई तुम्हारा जोगी

जो सांस भर ले ले तुम्हारे कमलगुलाब फूल की बहती सुगंध

भौंरों से जवान फूलों में होती है रूचि की महक

जो भौंरों से बूढ़ी, वो होती हैं अम्माँए, होती हैं वो आदर का पात्र

सुलग जाती हैं सुंदरियों के फूल की कोमल पंखुड़ीयाँ

सुन कर नटखट भौंरे की ये बात

पर सपन सुंदरियाँ तो सपन सुंदरियाँ ही हैं

खिला हुआ कमलगुलाब का महकता रूप भी हैं

फ़िदा है हर भौंरा उन्हीं पे

और सब अम्माओं को

नटखट भौंरों का आदर से प्रणाम


सपन सुंदरियों तुम फूल हो, 

खिला हुआ कोमल कमलगुलाब हो

सृष्टि की देन हो, जीवन की मोह माया हो 

कविता की हर पंक्ति हो

हर भौंरे हर कविता का अस्तित्व ,

तुम्हारे खिले हुए कमलगुलाब के सुन्दर रूप से ही है

तुम आरम्भ हो, तुम अंत हो

तुम्हारा कमलगुलाब का निखरा रूप ही सृष्टि है

वो नहीं, तो कुछ नहीं

तुम्हारे खिलेते हुए कमलगुलाब के रूप की रौनक 

दिव्य से लेकर, मानव के रोम रोम में बसी है

तुम स्त्री हो

तुम सपन सुंदरी हो

सब के सपनों में, मन की गहराइयों में बसी हो

कोई लिख देता है तुम पे कविता, बन के कवि

कोई दबा लेता है तुम्हारी आस, 

अपने मन की गहराइयों में, बन के संसार का अकेला ढोंगी

तुम फूल हो, कोमल गुलाब हो, सुन्दर कमल हो

दिव्य का, सृष्टि की देन हो

महकता हुआ खिला  कमलगुलाब हो 

तुम सपन सुंदरी हो

तुम स्त्री हो

तुम कविता हो, स्वर्ग के दिव्य फूलों की दिव्य काव्य

तुम स्त्री हो

 

हर व्यक्ति देता है कई परीक्षाएं , 

विद्यालय से लेकर, अपने जीवन की

और जीवन की एक प्रथम परीक्षा में उत्तीर्ण होना, और फेल होना

बताता है उस व्यक्ति की आत्मा और शरीर के दोष का अंतर

हो जाते हैं कई परिजन, शुभ चिंतक, सहयोगी , दर्शक 

खिलाड़ियों की उस जीवन की प्रथम परीक्षा में फेल

धन के लोभ में, या झूठ के बहकावे में

और दिखा देते हैं अपने शरीर का दोष, भुला के अपनी आत्मा को

हमें सम्मान है हर खेल के खिलाड़ियों का 

जीवन की प्रथम परीक्षा उत्तीर्ण करने का है हममें भाव

आत्मा हमारी भी है, शरीर हमारा भी है

रखते हैं हम अपनी आत्मा की वाणी अपने दिल में

भूल जाते हैं खिलाड़ी अपने ही शब्दों को कभी कभी, कई बार

याद दिलाने वाले होते हैं बहुत


सर्व सम्मान और आदर भावना के साथ

तुम स्त्री हो

 

 

 


 


 


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