sunil saxena

Inspirational

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sunil saxena

Inspirational

एक लेखक, एक कवि, और एक संपादक, एक आलोचक, एक अध्यापक

एक लेखक, एक कवि, और एक संपादक, एक आलोचक, एक अध्यापक

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एक लेखक पढ़ता है दूसरों के लेख, एक कवि के भाव से

सराहता है वो औरों के लेख, अपनी कवि की भावना से

बन नहीं सकता वो कभी एक संपादक,

जो पढ़ता है लेख कवियों के एक आलोचक बन के

देते हैं नंबर अध्यापक बन के

बना देते हैं वो उपन्यास और कविता को

विद्यालय की परीक्षा का पात्र नंबर दे के

लकीर के फकीर नहीं होते लेखक और कवि

तभी लिख देते हैं एक नया ग्रन्थ

अपनी कल्पना से, शब्दों की नई रचना रचने

शब्दों की मोतीयों की माला में

और लगे रहते हैं संपादक, आलोचक और अध्यापक ,

क, ख, ग , की ही रचना रचने उम्र भर

लेखक पढ़ता है, और लेखकों और कवियों,के लेख को,

अपनी कल्पना और प्रेम के भाव से

संपादक,आलोचक ,अध्यापक पढ़ते हैं लेखकों के लेख,

उन्हें विद्यार्थी समझ कर


जो छड़ी के ज़ोर पर सुधारे जा सकें उनके अनुसार 

संपादक, आलोचक,अध्यापक, लगे रहते हैं व्याकरण सुधारने

लेखक लगे रहते हैं अपनी कल्पना निखारने

एक लेखक, कहानीकार अपनी कल्पना की दुनिया में झूमते हैं

एक कवि, अपनी सपनों की दुनिया में झूलता है

संपादक रहते हैं अपनी दुनिया में समाज को सुधारने

आलोचक रहते हैं दुनिया को अपने अनुसार बनाने

अध्यापक रहते हैं अपनी दुनिया में विद्यार्थीयों को सुधारने

रहते हैं सब मन मौजी, अपनी, अपनी दुनिया में

और उठाते हैं ऊँगली एक दूसरे की दुनिया पे 

ना भाँति उन्हें किसी की दुनिया, सिवाए अपनी के

लेकिन बनाते हैं वो बातें सब की दुनिया की


तुम देते हो नंबर सपनों को परीक्षा समझ कर

जो तुम ना जानो कल्पना का जोश 

लेखक, कवि होते हैं मदहोश अपनी दुनिया में

होते हो तुम खरगोश अपनी दुनिया में

कहते हो रहतें हैं हम बेहोश अपनी दुनिया में

देखते हो तुम सब को असली दुनिया के आईने से

देखते हैं हम सब को, स्नेह के आईने से

कल्पना को भी बना देते हैं वो , नंबर दे के परीक्षा का पाठ 

बना देते हैं एक लेखक, कवि को भी पाठशाला का विद्यार्थी

कुछ लेख, कविता, छू जाती हैं दिल को, कर देती हैं प्रभावित

कुछ निकल जाती हैं दिमाग से, भूल जाते हैं उन्हें

संपादक, आलोचक और अध्यापक, इतिहास नहीं रचते

वो इतिहास पढ़ते हैं और पढ़ाते हैं


एक लेखक, एक कवि, और एक संपादक, एक आलोचक, एक अध्यापक

सब हैं अपनी दुनिया में सम्राट, ले कर प्रभु का नाम

मन में है उमंग सब के, एक कटी पतंग की तरह,

नीले आसमान में निरंतर झूलते रहने की

सबको, सबका है प्रणाम, सबका है आभार

हृदय है सबका कोमल, अपने ही भाव में

सब हैं नीले गगन में चमकते सितारे, अपने ही भाव में

सबको है सबसे भी प्रेम, अपने ही भाव में

सबको है प्रणाम, सबको है आभार

देते हैं वो नंबर खिलाड़ियों को भी, उन्ही के खेल का

हम हैं माँ भारती के सपूत, हम सब हैं पृथ्वी की संतान,

हम हैं हम

जय हिंद 



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