आखिर पीपल रोता क्यों है ?
आखिर पीपल रोता क्यों है ?
आखिर पीपल रोता क्यों है ?
गाँव के कोने पर
पीपल का छतनार पेड़
मेरे बाबा के बाबा के बाबा ने
जब इस जगह पर
मिट्टी खोदकर गढ़ी थी एक दीवार
किलकारे थे कुछ बच्चे
तब से पीपल रखने लगा था हिसाब
खड़ी होती दीवारों के आँगन का |
बच्चे खेलते
उसकी सरसराती हवा के नीचे सुर्रा
रात में बदते उसके नीचे जुते खेत में झाबर
तब पीपल झूमता पुलक कर
और डोलती उसकी पत्तियाँ दुगनी रफ्तार में |
मिट्टी खुदती रही
गड्ढा बढ़ता गया
बन गया बड़ा तालाब
खड़ी होती दीवारों से
पीपल के एक ओर
खड़ा हो गया
पूरा-पूरा गाँव
लगाये गए
आम, महुआ, नीम के पेड़
बीतती रहीं
पीढियां-दर पीढियाँ |
अब लोग तोड़ते हैं आम
बीनते हैं महुआ
तैरते हैं तालाब
निकल जाते हैं बाग में
पीपल को अनदेखा कर |
बताती हैं पीपल के नीचे घास छीलने वालियाँ
कि, पीपल रोता है
भीगी रहती हैं उसकी जड़ें
ताने से कट-कट कर
रिसता है कुछ
निकलती है एक भाँय-भाँय करती आवाज
उसके नीचे |
एक ओर हरा-भरा गाँव
बजती हैं जानवरों के गले की घंटियाँ
चरवाहों की हँसी के साथ
दूसरी ओर रिसता है पीपल
गाँव में है चर्चा
आखिर पीपल रोता क्यों है ?