बड़ा कौन ?
बड़ा कौन ?
बड़ा कौन तुम बड़े गर्व से पूछते हो
बताओ,
धरती बड़ी है या आकाश ?
नदी बड़ी है या सागर ?
मैं मुस्कुरा देती हूँ
तुम्हारा आशय समझ कर |
तुम्हें क्यों है इतनी शंका ?
सृष्टि के आदि से अब तक
बिना प्रतिवाद के
स्वीकारी है मैंने तुम्हारी श्रेष्ठता |!
लेकिन आज
जब तुम पूछते हो
तब कहती हूँ मैं भी
बड़े आदर के साथ कि,
बड़ा तो आकाश है
लेकिन आश्रय धरा ही देती है
बड़ा तो सागर है
लेकिन प्यास नदी ही बुझाती है !