काश !!
काश !!
कुछ कदम तो साथ चलो
भले ही ना पास पास चलो,
बस उस नुक्कड़ तक तो साथ चलो।
जहां मैं अपने में खो जाऊं और तुम गुम हो जाओ अपने में,
चलने की अकेले मेरी फितरत नहीं और
शायद तुमको भी कुछ कदम साथ चलने में शिकायत नहीं,
रास्ते में कहीं शायद कोई बात होगी,
दिल के कोने में छिपे जज़्बात की कोई आवाज तो होगी,
शायद मैं कुछ सुनूं जो तुम ना कहो,
और तुमको मेरे दिल की भावनाओं की आहट होगी,
काश, वो नुक्कड़ उस अंधेरे में खो जाए,
जिस अंधेरे को मैंने इस दिल में पनाह दी,
बसा कर अंधकार को मैंने दिल की हर मुराद पर अमावस कर दी,
सुना है आज दूज का चांद है, तुम साथ हो और वो भी आज मेहरबान हैं,
जिसने बरसो से तकदीर में लिखा,
ना साथी मिला और ना साथ ही मिला।
आज कुछ कदम साथ चलो, भले ही ना पास पास चलो,
कुछ क़दम तो साथ चलो ।।

