युद्ध-विरुद्ध
युद्ध-विरुद्ध
थे, कभी साथ साथ, फिर अलग हुए,
ना जाने कितने सितम कब कब हम पर हुऐ,
फिर भी हम अपने दम पर खड़े हुए,
आज अरसे बाद तुम अपना हक जताने आगए,
गर, तन्हाई में, अपनापन जता दिया होता,
एक साथ चलने के लिए मना लिया होता,
तो आज जीतने के लिए लाव-लशकर के साथ न आना होता,
वक्त बताएगा की इतिहास के पन्नो में किसका वजूद होगा,
मगर ये सच हे, हाथ बढ़ाने की बजाए,
हथियार उठाने में सिर्फ तुम्हारा ही जिक्र होगा।