हमसफर
हमसफर
सूखी सूखी है धरती सूखे सूखे हैं नदी के किनारे, बरसों से किसी के प्यार की नमी के इंतजार में पड़े हैं बेसहारे है।
है, इंतजार कभी तो किसी के प्यार की नरमी बुझा देगी बरसो के अकेलेपन की जलन, कोई तो साथ अपने भी होगा, वीरान सी जिंदगी का हमसफर।
अचानक मदमस्त नई दुल्हन की चाल सी, प्रकृति की सुंदरता को समेटे हुए श्वेत बर्फ की शीतलता को लेते हुए चली आती है, नदी की धारा किनारों के पास।
नहीं भूले थे जो किनारे, कभी अपने सपनों को, इंतजार में थे सदा जिस अपने के, अचानक पाते ही नरम स्पर्श ना जाने क्यों कर लेते हैं, अपना जीवन धारा को अर्पण, बना लेते हैं, सपनों का महल उसमें गुजारेंगे जिंदगी बनकर हमसफर, होती है जिज्ञासा या तो बह जाएंगे उसके साथ या रोक लेंगे, हर उसका बढ़ता कदम, मगर जीवन का हमसफर उसे ही बनाएंगे ओर अपने सपने को साकार कर दिखाएंगे।
सपनों में जीने वाले नहीं होते वजूद से परिचित, क्योंकि सफर में साथ तो मिलते हैं अनेक, मगर बड़ी मुश्किलों से बनता है हमसफर कोई एक।
इसलिए, नदी की धारा जो अपनी चंचलता में खोई, सदा जागी जो कभी ना सोई उसके सफर में आए कई कई पड़ाव, सुंदर-सुंदर से मुकाम, जिन्हें देखकर भी वो ना ठहरी तो क्या समझेगी, किनारों की भावनाएं गहरी,
जिसने गति को बनाया जीवन की नीति, उसका भ्रम जाल तो तब टूट जाएगा, सागर में मिलते ही नदी का नाम गुम हो जायेगा, एक पल में जो किनारों को लगने लगे थे अपने, नदी की धारा ने आगे, बढ़ते ही तोड़ दिए वह सारे सपने।
किनारे फिर से नए सपने सजाएंगे किसी नई धारा के इंतजार में आंचल फैलाएंगे।
धारा-किनारों के मिलन - स्वपन का चक्र निरंतर ऐसे ही चलेगा,
जीवन में हमसफर की तलाश का कटु सत्य वर्णन करेगा, इसलिए किनारे सदा रहते हैं वीरान, अकेले अताह, लहरों से कभी, दूर कभी दूर पास, हर लहर से करते प्यार का इजहार और बदले में रहता इकरार का इंतजार, इसलिए रहते है सदा वीरान और उदास।।