खुदगर्ज
खुदगर्ज
खुदगर्ज हो गया हर शख्स अब तो,
नही दूसरो से कोई सरोकार हैं,
अपने अपनो का ही समूह और
एक अलग उनका अपना ही संसार।
चेहरे पर नकाब, दिल में छुरी लिए चलते हैं,
सामने मिलते, तो जी हुजूर और
पीठ पीछे बातों के खंजर भौंकते रहते हे l
रिश्ते वो नही जहां अपनापन,
समझदारी, सम्मान और निस्वार्थ
की रिक्तिता हो,
रिश्ते वो जहां, प्यार, परवाह,
जुड़ाव ओर चाहत ही सिर्फ रिसता हो।
रिश्ता हो ना हो मगर, हर इंसान में मेरे साई,
परवाह और चाहत तो हो, और हो तो शबरी,
मीरा, राधा और कान्हा जैसी हो।
