खुदगर्ज
खुदगर्ज
मंशा यहां सुलझने सुलझाने की नहीं, उलझना हर शख्स चाहता है,
मुद्दा कुछ खास नहीं मगर मुद्दई हर शख्स बनना चाहता है ।
खुदगर्ज हो गई हर नस्ल अब तो, नहीं दूसरों से कोई सरोकार है,
अपने अपनो का ही समूह और हर एक का अपना ही अलग संसार हैं।
रंग, नस्ल, धर्म और रिश्तों में बट गए हैं, हम,
अब इतना भी ना बांटो, कि अपने ही दिल ओर दिमाग में भी बट जाए ।
दिल बहुत नाजुक सी चीज है, इस पर शक-ओ-शुबह का पहरा ना बैठाओ,
इल्म ओर काबिलीयत की दौलत बख्शी उस खुदा ने जरा अपना दिमाग भी लगाओ ।
बचपन की लंबी लंबी नींदे और सुनहरे ख्वाब,
बढ़ते बढ़ते उम्र, कम हुई नींदें, टूटते गए ख्वाब।
सिर्फ चार पल जीनी है जिंदगी इसे तो राजी खुशी बिताओ।
जहां तक हो सके अमन ओर सुलह की राह ही अपनाओ ।
