मज़दूर
मज़दूर
दुबली पतली उसकी काया
गर्मी में तपा हुआ बदन गरमाया
पसीने में तर रहता है,
फिर भी बोझा ढोता है,
मज़दूरी है इसका नाम,
मजबूरी में करते काम,
अशिक्षा का है परिणाम !
रहने को है घर नहीं,
खाने को भोजन नहीं,
तन ढकने को वस्त्र नहीं,
यह समस्या रोज़ बनीं !
इक साड़ी में तन ढकती स्त्री
और ना कोई चारा,
जो मिले जैसा मिले
विवश हो करना है गुज़ारा
पीढ़ी दर पीढ़ी पिसता रहता,
मज़दूरी पर निर्भर रहता !