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Aishani Aishani

Abstract Drama

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Aishani Aishani

Abstract Drama

तुम बुद्ध हो गए...!

तुम बुद्ध हो गए...!

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तुम बुद्ध हो..! 

रात्रि मध्य में घर छोड़

सत्य की तलाश में निकल गए

बोधि वृक्ष के तले बैठ ज्ञान प्राप्त किया

और फिर एकांत तलाश कर

 चल दिए अनंत यात्रा पर (निर्वाण की प्राप्ति) 


और बन गये सिद्धार्थ से बुद्ध..! 

बेश़क...! 

तुमने गृह त्याग कर तलाशा अपना मार्ग

उस पूरनमासी के चाँद को साक्षी बनाया हर बार

पर...! 

एक सवाल है हे तथागत..! 

कहो तो पूछ लूँ..? 


यदि हमने ऐसा किया होता तो... 

तो क्या हमें मिलता मान सम्मान..? 

संघ में मिलता तब कोई स्थान..? 

सच सच बताना 

क्या अपराध था उस आम्रपाली का...

जिसे बना दिया गया नगरवधू...? 

क्यों व

ंचित रही वो उस अधिकार से

मान सम्मान से...! 

हाँ..! 

जब भी हमने गृह त्याग किया ज्ञान ध्यान के लिए

हम हो गये कलंकित बन गये कुलक्षिन और चरित्रहीन.. 

यकीनन तुमने हमें सम्मानित किया

पर.. हे तथागत..! 

ओरों का क्या किया जाये...? 


कभी लौट के आना गृहनगर कौशाम्बी में

देखोगे कोई यशोधरा नवजात शिशु के साथ

प्रतिक्षारत्त है आज भी उस सिद्धार्थ के लिए

जो छोड़ गया है उसे यूँ ही सोता हुआ ..! 

तुम पुरुष थे और गृह त्याग बुद्ध हो गये...!!


सवाल हर युग में होगा 

जवाब देने तुमको ही आना है

बस वक़्त और स्थान बदलेगा

जब राम थे तब भी ऊंगली उठाई गई

 जनक दुलारी पर.. 

और अब जबकि....!


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