रुदाली
रुदाली
काला आवरण…सर मुड़ाकर
अपना वजूद मिट्टी में मिलाकर,
अग्निपरीक्षा को तैयार है स्त्री,
कि अब रंग उसको पी जाने,
कड़वे गरल की तरह,
रूखे फीके अन्न भी खाने,
मीठे तरल की तरह,
एहसासों की हत्या कर,
सब कुछ पराया करना,
अब टूटी हंडिया के जल से,
हृदय तल में तरावट भरना,
ढककर खुद को उजाले में,
रातों को कोठरी में मरना,
रोज़ मरना जीवन की चाह में,
वेदना कराहती उसकी आह में,
काल के इक बवाल से,
दुःख उसके ही हिस्से आये,
समय का कुचक्र चला,
जीवन भर को ठोकर पाये!
बिन गम के भी आंसू बहाने,
रिश्ते कैसे भी हो जाने अनजाने,
जग के दर्द को धोते-धोते
बहते जाना बस रोते-रोते...