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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Others

अचार पापड़ की दुनिया

अचार पापड़ की दुनिया

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माँ को मैंने घर के कामों में ही मसरूफ़ देखा है.....

खाना बनाने में....

घर की सफ़ाई में....

घर के मैनेजमेंट में ...

मुझे लगने लगा था की माँ को घर का काम ही पसंद है...

जब तब वह घर को बुहारती है...

झाड़न से खिड़कियों के जालें साफ़ करती है....

कपड़ों को तह करके फिर संभालकर रखती है ....

न जाने कितने सारे ऐसे काम वह करती रहती है....

शायद माँ अपने अकेलेपन को पहचान गयी है.....

अपने अकेलेपन को पहचानकर माँ कभी दीवार की कोई खूँटी बन जाती है....

अकेलेपन में वह दीवारों पर लगी तस्वीरें निहारती रहती है...

तस्वीरों में कैद बच्चों के नटखटपन..... 

परिवार संग बिताएँ हुए खुशियों के पलों की यादें.....

और भी न जाने ऐसी ही ढेर सारी छोटी छोटी बातों की यादें...

वक़्त के साथ पापा अपनी दुनिया में और हम अपनी दुनिया मे गुम होते गए .... 


माँ अपने अकेलेपन को थाम कर अचार पापड़ और बड़ियों की दुनिया में रमने लगी है....





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