घुट-घुट कर यूँ ही.....
घुट-घुट कर यूँ ही.....
घुट-घुट कर यूँ ही, घट-घट घटती ज़िन्दगी,
दर-दर दर्द लिये, झर-झर झरती ज़िन्दगी।
सर-सर साँसों में, सील-सील सुलगती ज़िन्दगी,
पल-पल पलकों से, ढुल-ढुल ढुलकती ज़िन्दगी।
घुट-घुट कर यूँ ही, घट-घट घटती ज़िन्दगी…..
गुनाह भी हम हुए, और गुनहगार भी हम रहे,
ज़िन्दगी तेरी अदालत, में तलबगार ही हम रहे।
क्षण-क्षण क्षुधा से, तिल-तिल तरसती ज़िन्दगी,
बूंद-बूंद बारिश सी, टीप-टीप टपकती ज़िन्दगी।
घुट-घुट कर यूँ ही, घट-घट घटती ज़िन्दगी…..
चाँद धुंधला रहा, दिन पर भी रातों का साया रहा,
रौशनी से नहीं गिला, अंधेरा भी मुझसे पराया रहा,
नित-नित नियति में, शनैः-शनैः शन होती ये ज़िन्दगी,
कण-कण काल में, खर-खर खिन्न होती ये ज़िन्दगी।
घुट-घुट कर यूँ ही, घट-घट घटती ज़िन्दगी…..