ग़ज़ल - यहाँ हर एक दिल मासूम तोड़ा है ज़माने ने
ग़ज़ल - यहाँ हर एक दिल मासूम तोड़ा है ज़माने ने
यहाँ हर एक दिल मासूम तोड़ा है ज़माने ने।
जिगर का खून भी सारा निचोड़ा है ज़माने ने।
बड़ी फ़ेहरिस्त लम्बी है नहीं ख़्वाहिश सिमटती है।
दिखे जो कुछ भी अच्छा है वो जोड़ा है ज़माने ने।
यहाँ बिकती है नारी मंडियों में मुँह मगर देखो।
दहेजों को मुनासिब मान मोड़ा है ज़माने ने।
यहाँ दौलत के भूखे भेड़िये सब नोच खाते हैं।
गला लाचार इंसा का मरोड़ा है ज़माने ने।
नहीं दिखती है मजबूरी गरीबों की बुरी हालत।
छिपा बटुआ पलट कर मुंह सिकोड़ा है ज़माने ने।
कभी उम्मीद उठती है गगन में बन के गुब्बारा।
चुभा कर कील नफ़रत की वो फोड़ा है ज़माने ने।
किरण 'अवि' की जहाँ चमकी, अँधेरा रह नहीं सकता।
दिखे सच जब नजर को झूठ छोड़ा है ज़माने ने।