मैं नारी हूं
मैं नारी हूं
मैं नारी हूं,
अभिशाली हूं,
जीवन जननी, अभिमानी हूं,
मेरी व्यथा,
अनजान नहीं,
सदियों से मैं,
हर पीड़ा हरती आयी हूं।
मेरी क्षमता, तुम से कुछ
ज्यादा है,
इसका मुझे खयाल नहीं,
मेरा हक जो मेरा है,
बस उतना ही तो माँग है,
इस पुरष समाज,
में पौरुष, कुछ ज्यादा है,
उसमें से मेरा हिसा
बस मेरा हो,
जीवन की इस अजब
पहेली में,
मेरा भी कुछ ओरूष हो,
ज्यादा नहीं बस मेरा
हक जो मेरा है,
उतना ही तो मांगा है,
सदियों से जो छीना तुमने,
बस उतना ही तो मांगा है,
हमसे भी तुम पूछा करो,
इतने की ही बस, आशा है,
मुमकिन है, अभी मैं,
तैयार ना हूं,
कुछ पग, मैं तुमसे
पीछे हूं,
जीवन रूपी इस माया में,
अपना रास्ता मैं खुद चुनू,
बस इतना हक ही तो,
मांगा है,
नारी हूं,
जननी हूं,
मुझे मालूम है,
पर,
मेरी सांसे, बस मेरी हों,
इतना ही तो मांगा है,
अपने जीवन की
पहचान का,
अपना हक, ही तो मांगा है,
ज्यादा नहीं,
जी मेरा है,
उतना हक ही तो मांगा है।।