मैं खामोश
मैं खामोश
हाइकु
रात अकेली
मैं नींद में खोया था
ख्वाब था दिखा
दीवारें घूमी
कुछ आकर बोली
मैंने सुना था
एक पंछी था
उसपर बैठा था
बोल रहा था
किसने सुना
शायद दीवार ने
हाँ दीवार ने
मैं खामोश था
शायद गूँगा था मैं
सुन रहा था
उजाड़ दिए
बोला वो दीवार से
घर हमारे
तुम्हें बनाया
हम बेघर हो गये
वो खूब रोया
दीवार चुप
मैं ख्वाब से यूँ जागा
डर रहा था
खामोश था मैं
चुप भला क्यों था मैं
हैरान था मैं।।