अनमोल प्यार
अनमोल प्यार
कूकर की तीन सीटी और दाल बनकर तैयार
एक कढ़ाई में तेल सरसों का छौंक को तैयार
तोड़ी राई थोड़ा जीरा, हींग की खुशबू आय हाय
कटे हुए प्याज़ कटे टमाटर मिर्ची संग है तैयार।।
रंग बदलते प्याज़ को देखा दिया टमाटर डाल
धीरे धीरे खूब चलाया और मिलादी दाल
तड़के के संग मिलकर, मेरी दाल का निखरा रूप
कटोरी में जब डल कर आई ,घी भी दिया डाल।।
छुट्टी से जब मैं घर को आया सबने पूछा हाल
एक माँ ही थी जिसने पूछा क्या खायेगा लाल
काम करके थक चुकी थी हमने लिया मन मार
बस फरमाइश करदी सादा चावल और सादी दाल।।
भाँप गयी वो मन को मेरे बना दी स्वादिष्ट दाल
तब तक पापा लेकर आये खाने को मिष्ठान
एक तरफ रसगुल्ले थे तो दूजे में मोहनताल
बोले ले खा ले इसको भी अपनी माँ के लाल।।
यही तो है जिसे कभी समझा नहीं जा सकता
यही तो है जिसे कभी छीना नहीं जा सकता
और सबसे सुंदर एक यही एहसास है
अनमोल है यह, माँ पापा का प्यार है।।
