चाँद और पानी की खोज
चाँद और पानी की खोज
अगर कभी चाँद को ऊपर न भाये
वो भी पानी खोजने धरती पर आये
सागर नदिया देख चाँद खुश हो जाये
और फिर धरती पर आकर बस जाये।।
और फिर पता चले यहाँ तो पानी खारा है
फिर कैसे अपनी वो प्यास बुझाये
किसी ने कहा जगह बदल लो फिर से
क्या पता अच्छा पानी पीने को मिल जाये!!
जगह बदली पानी फिर भी अच्छा न मिले
किसी ने खरीद कर पीने की सलाह दी
लेकिन उसके लिए पैसे कहाँ से लाये
फिर सोचा कोई नौकरी ही लग जाये।।
अब भला न कोई डिग्री चाँद के पास
नौकरी मिलना जैसे हुआ पहाड़
प्यास से गला सूख रहा था चाँद का
अच्छे पानी का कोई जुगाड़ न हुआ।।
फिर एक झोपड़ी में एक गरीब से मिला
बोला प्यास लगी है ,पानी अच्छा न मिला
वो गरीब था सलाह नहीं थी उसके पास
दिया एक गिलास जो खुद के लिए रखा था।।
जल को खोजने क्यों चाँद पे आतें है लोग
यहीं पे शुद्ध जल क्यों नहीं बचाते हैं लोग
ज़िन्दगी यहीं है क्यों नहीं समझते हैं लोग
धरती स्वर्ग है खुद ही तो कहते हैं लोग।।
चाँद भी समझ गया एक घूँट ही उसने पिया
बाकी गरीब को वापिस देकर धन्यवाद किया
पानी धरती पे ही मिलकर सबको बचाना पड़ेगा
इतना समझाकर चाँद उस दिन वापिस लौट गया।।
